Book Title: Karmagrantha Part 5 Shatak
Author(s): Devendrasuri, Shreechand Surana, Devkumar Jain Shastri
Publisher: Marudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur
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पंचम कर्मग्रन्थ
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स्थितिबंध के अल्पबहुत्व दर्शक इन स्थानों की संख्या ३६ है । यद्यपि जीवसमास के १४ भेद हैं और प्रत्येक जीवसमास की जघन्य और उत्कृष्ट के भेद से दो-दो स्थितियां होती हैं। जिससे जीवसमासों की अपेक्षा २८ स्थान होते हैं, किन्तु स्थितिबंध के अल्पबहुत्व के निरूपण में अविरत सम्यग्दृष्टि के चार स्थान, देशविरति के दो स्थान, संयत का एक स्थान और सूक्ष्मसंपराय का एक स्थान और मिलाने से कुल छत्तीस स्थान हो जाते हैं ।
इन छत्तीस स्थानों में आगे-आगे का प्रत्येक स्थान पूर्ववर्ती स्थान से या तो गणित है या अधिक है।' उक्त स्थितिस्थानों को यदि ऊपर से नीचे की ओर देखा जाये तो स्थिति अधिकाधिक होती जाती है और नीचे से ऊपर की ओर देखने पर स्थिति घटती जाती है । इससे यह सरलता से समझ में आ जाता है कि कौन-सा जीव अधिक स्थिति बांधता है और कौन - सा कम । एकेन्द्रिय से द्वीन्द्रिय, द्वीन्द्रिय सेतीन्द्रिय वीन्द्रिय से चतुरिन्द्रिय, चतुरिन्द्रिय से असंज्ञी पंचेन्द्रिय के अधिक स्थितिबंध होता है और असंज्ञी पंचेन्द्रिय से संयमी के, संयमी से देशविरति के, देशविरति से अविरत सम्यग्दृष्टि के और अविरत सम्यग्दृष्टि से संज्ञी पंचेन्द्रिय मिथ्यादृष्टि के स्थितिबंध अधिक होता है । उनमें भी पर्याप्त के जघन्य स्थितिबंध से अपर्याप्त का जघन्य स्थितिबंध अधिक होता है । इसी प्रकार एकेन्द्रिय से
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१ किसी राशि में गुणा करने से उत्पन्न होने वाली राशि गुणित राशि कहलाती है, जैसे ४ से २ का गुणा करने पर आठ लब्ध आता है, यह आठ अपने पूर्ववर्ती ४ से दो गुणित है । किन्तु ४ में २ का भाग देकर लब्ध २ को ४ में जोड़ा जाये तो ६ संख्या होगी । उसे विशेषाधिक या कुछ अधिक कहा जायेगा। क्योंकि वह राशि गुणाधिक नहीं है किन्तु भागाधिक है । गुणित और विशेषाधिक में यही अन्तर है ।
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