Book Title: Karmagrantha Part 5 Shatak
Author(s): Devendrasuri, Shreechand Surana, Devkumar Jain Shastri
Publisher: Marudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur

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Page 439
________________ ३६२ में पूर्वोक्त सोलह प्रकृतियों का क्षपण किया जाता है और उनके क्षय के पश्चात आठ कषायों का भी अन्तर्मुहूर्त में ही क्षय कर देता है ।" उसके पश्चात नौ नोकषाय और चार संज्वलन कषायों में अन्तरकरण करता है । फिर क्रमशः नपुंसकवेद, स्त्रीवेद और हास्यादि छह नोकषायों का क्षपण करता है और उसके बाद पुरुषवेद के तीन खंड करके दो खण्डों का एक साथ क्षपण करता है और तीसरे खण्ड को संज्वलन क्रोध में मिला देता है । उक्त क्रम पुरुषवेद के उदय से श्रोणि चढ़ने वाले के लिये बताया है । यदि स्त्रीणि पर आरोहण करती है तो पहले नपुंसकवेद का क्षपण करती है, उसके बाद क्रमशः पुरुषवेद, छह नोकषाय और स्त्रीवेद का क्षपण करती है यदि नपुंसक श्र ेणि आरोहण करता है तो वह पहले स्त्रीवेद का क्षपण करता है, उसके बाद क्रमशः पुरुषवेद, छह नोकषाय और नपुंसक वेद का क्षपण करता है । सारांश यह है कि शतक १ किसी-किसी का मत है कि पहले सोलह प्रकृतियों के ही क्षय का प्रारम्भ करता है और उनके मध्य में आठ कषायों का क्षय करता है, पश्चात् सोलह प्रकृतियों का क्षय करता है । गो० कर्मकांड में इस सम्बन्ध में मतान्तर का उल्लेख इस प्रकार किया है 1 ― णत्थि अणं उवसमगे खवगापुव्वं पच्छा सोलादीणं खवणं इदि खवित्तु अट्ठाय । केइ णिद्दिट्ठ ॥ ३६१ || उपशम श्रेणी में अनंतानुबंधी का सत्व नहीं होता और क्षपक अनिवृत्तिकरण पहले आठ कषायों का क्षपण करके पश्चात् सोलह आदि प्रकृतियों का क्षपण करता है, ऐसा कोई कहते हैं । इत्थीउदए नपुंसं इत्थीवेयं च सत्तगं च कमा । अपुमोदयंमि जुगवं नपुंसइत्थी पुणो सत्त ॥ Jain Education International - पंचसंग्रह ३४६ ( शेष अगले पृष्ठ पर देखें) www.jainelibrary.org For Private & Personal Use Only

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