Book Title: Karmagrantha Part 5 Shatak
Author(s): Devendrasuri, Shreechand Surana, Devkumar Jain Shastri
Publisher: Marudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur

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Page 487
________________ aries .Kavirser-atta.itt ..... ........ .... ४४० परिशिष्टऔर न प्रत्येक पल्योपम के बादर और सूक्ष्म भेद ही किये गये हैं । संक्षेप में पल्योपम का वर्णन इस प्रकार है-~ पल्य के तीन प्रकार है ---व्यवहारपल्य, उद्धारपल्य और अद्धापल्य । ये तीनों नाम सार्थक हैं और उद्धार व अद्धा पल्यों के व्यवहार का मूल होने के कारण पहले पल्य को व्यवहारपल्य कहते हैं । अर्थात् व्यवहारपल्य क इतना ही उपयोग है कि वह उद्धारपल्य और अद्धापल्य का आधार बनता है इसके द्वारा कुछ मापा नहीं जाता है। उद्धारपल्य से उद्धृत रोमों के द्वारा द्वीप और समुद्रों की संख्या जानी जाती है, इसीलिये उसे उद्धारपल्य कहते है और अद्धापल्य के द्वारा जीवों की आयु आदि जानी जाती है, इसीलिये उसे अद्धापल्य कहते हैं । इन तीनों पल्यों का प्रमाण निम्न प्रकार है-- __ प्रमाणांगुल से निष्पन्न एक योजन लम्बे, एक योजन चौड़े और एक योजन गहरे तीन गड्ढे बनाओ । एक दिन से लेकर सात दिन तक के भेड़ के रोमों के अग्रभागों को काटकर उनके इतने छोटे-छोटे खण्ड करो कि फिर वे कैची से न काटे जा सकें। इस प्रकार के रोमखण्डों से पहले पल्य को खव ठसाठस भर देना चाहिए । उस पल्य को व्यवहारपल्य कहते हैं। उस व्यवहारपल्य से सौ-सौ वर्ष के बाद एक-एक रोमखण्ड निकालतेनिकालते जितने काल में वह पल्य खाली हो, उसे व्यवहार पल्योपम कहते हैं । व्यवहारपल्य के एक-एक रोमखण्ड के कल्पना के द्वारा उतने खण्ड करो जितने असंख्यात कोटि वर्ष के समय होते हैं और वे सब रोमखण्ड दूसरे पल्य में भर दो। उसे उद्धारपल्य कहते हैं । उस उद्धारपल्य में से प्रति समय एक खण्ड निकालते-निकालते जितने समय में वह पल्य खाली हो, उसे उद्धारपल्योपम काल कहते हैं । दस कोटाकोटी उद्धारपल्योपम का एक उद्धार-सागरोपम होता है। अढाई उद्धार. सागरोपम में जितने रोमखंड होते हैं, उतने ही द्वीप, समुद्र जानना चाहिए । उद्धारपल्य के रोमखंडों में से प्रत्येक रोमखंड के कल्पना के द्वारा पुनः उतने खंड करो जितने सौ वर्ष के समय के होते हैं और उन खंडों को तीसरे पल्य में भर दो। उसे अदापल्य कहते हैं । उसमें से प्रति समय एक-एक रोम Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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