Book Title: Karmagrantha Part 5 Shatak
Author(s): Devendrasuri, Shreechand Surana, Devkumar Jain Shastri
Publisher: Marudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur

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Page 491
________________ परिशिष्ट-३ जो क्रिया होती है, वह गणना में नहीं ली जाती है । सूक्ष्म पुद्गल परावर्ती की जो व्यवस्था है, वही व्यवस्था यहाँ समझना चाहिये । उत्कृष्ट और जघन्य प्रदेशबंध के कर्मकांड में आगत वर्णन स्वामियों का गोम्मटसार ૪૪૪ दिगम्बर साहित्य गो० कर्मकांड में भी प्रदेशबंध के स्वामियों का वर्णन किया गया है । जो प्रायः कर्मग्रन्थ के वर्णन से मिलता-जुलता है । तुलनात्मक अध्ययन में उपयोगी होने से संबंधित अंश यहाँ प्रस्तुत किया जा रहा है । उत्कृष्ट और जघन्य प्रदेशबंध के स्वामियों के बारे में यह सामान्य नियम है कि उत्कृष्ट योगों सहित, संजी पर्याप्त और थोड़ी प्रकृतियों का बंध करने वाला जीव उत्कृष्ट प्रदेशबंध तथा जघन्य योग वाला असंज्ञी और अधिक प्रकृतियों का बंध करने वाला जघन्य प्रदेशबंध करता है । सर्वप्रथम मूल प्रकृतियों के उत्कृष्ट बंध का स्वामित्व गुणस्थानों में कहते आउक्कस्स पदेसं छ्वकं मोहस्स णव दु ठाणाणि । सेसाण तणुकसाओ बंधदि उक्कस्सजोगेण ॥ २११ आयुकर्म का उत्कृष्ट प्रदेशबंध छह गुणस्थानों के अनन्तर सातवें गुणस्थान में रहने वाला करता है । मोहनीय का उत्कृष्ट प्रदेशबंध नौवें गुणस्थानवर्ती करता है और आयु व मोहनीय के सिवाय शेष ज्ञानावरण आदि छह कर्मों का उत्कृष्ट प्रदेशबन्ध उत्कृष्ट योग का धारक दसवें सूक्ष्मसंपराय गुणस्थानवाला जीव करता है । यहाँ सभी स्थानों पर उत्कृष्ट योग द्वारा हो बन्ध जानना चाहिए । उत्तर प्रकृतियों के उत्कृष्ट प्रदेशबंध का स्वामित्व इस प्रकार हैसत्तर सुहुमसरागे पंचऽणियट्टिम्हि देसगे तदियं । अयदे बिदियकसायं होदि हु उक्क्रस्सदव्वं तु ॥ २१२ छण्णोकसायणिद्दापलातित्थं च सम्मगो यजदी । सम्मो वामो तेरं परसुरआउ असादं तु ॥ २१३ देवचउक्कं वज्जं समचउरं सत्थगमणसुभगतियं । आहारमप्पमत्तो सेपवेसुक्कडो मिच्छो ॥ २१४ For Private & Personal Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org

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