Book Title: Karmagrantha Part 5 Shatak
Author(s): Devendrasuri, Shreechand Surana, Devkumar Jain Shastri
Publisher: Marudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur

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Page 504
________________ 0 ग्रन्थ परिचय कर्मग्रन्थ : जैन तत्वज्ञान, जीव-अजीव का स्वरूप कषाय, ज्ञान, गुणस्थान आदि समस्त विषयों का विवेचन प्रस्तुत करने वाला महान ग्रन्थ है। जैन साहित्य में इसका अपूर्व महत्व है। छ: भागों में निबद्ध यह ग्रन्थ जैन विद्या का अक्षय ज्ञान कोष कहा जा सकता है। रचयिता : इस ग्रन्थ के रचयिता जैनविद्या के पारंगत "श्रीमद् देवेन्द्रसूरि" (वि० 13-14 वीं शताब्दी) है। श्री सूरिवर महान विद्वान और उच्च चरित्र के पक्षधर थे। व्याख्याकार : कर्मग्रन्थ की यह प्रस्तुत व्याख्या श्री व. स्थानकवासी जैन परम्परा के वरिष्ठ संत विद्वान् प्रवर्तक मरुधरकेसरी श्री मिश्रीमल जी म० ने बड़ी सरल भाषा में प्रस्तुत की है। सम्पादक : इस गहन ग्रन्थ के विद्वान संपादक हैं : श्रीचन्द सुराना “सरस" तथा श्री देवकुमार जैन / प्राप्ति स्थान :श्री मरुधरकेसरी साहित्य प्रकाशन समिति पीपलिया बाजार, ब्यावर (राजस्थान) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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