Book Title: Karmagrantha Part 5 Shatak
Author(s): Devendrasuri, Shreechand Surana, Devkumar Jain Shastri
Publisher: Marudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur
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पंचम कर्मग्रन्थ
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खंड निकालते-निकालते जितने काल में वह पल्य खाली हो, उसे अद्धा-पल्योपम कहते हैं और दस कोटाकोटी अद्धापल्यों का एक अद्धासागर होता है । दसकोटि. अद्धासागर की एक उत्सर्पिणी और उतने ही की एक अवसर्पिणी होती है । इस अद्धा-पल्योपम से नारक, तिर्यंच, मनुष्य और देवों की कर्मस्थिति, भवस्थिति और कायस्थिति जानी जाती है ।
दिगम्बर ग्रन्थों में पुदगल परावर्तों का वर्णन
दिगम्बर साहित्य में पुद्गल परावर्तों के पाँच भेद हैं और पंच परिवर्तनों के नाम से प्रसिद्ध हैं । उनके नाम क्रमश: इस प्रकार हैं-द्रव्य-परिवर्तन, क्षेत्रपरिवर्तन, काल-परिवर्तन, भव-परिवर्तन और भाव-परिवर्तन । द्रव्य-परिवर्तन के दो भेद हैं-नोकर्मद्रव्य-परिवर्तन और कर्मद्रव्य-परिवर्तन । इनके स्वरूप निम्न प्रकार हैं
नोकर्मद्रव्य-परिवर्तन-एक जीव ने तीन शरीर और छह पर्याप्तियों के योग्य पुद्गलों को एक समय में ग्रहण किया और दूसरे आदि समय में उनकी निर्जरा कर दी। उसके बाद अनंतवार अग्रहीत पुद्गलों को ग्रहण करके, अनन्त वार मिश्र पुद्गलों को ग्रहण करके और अनन्तवार ग्रहीत पुद्गलों को ग्रहण करके छोड़ दिया। इस प्रकार वे ही पुद्गल जो एक समय में ग्रहण किये थे, उन्हीं भावों से उतने ही रूप, रस, गंध और स्पर्श को लेकर जब उसी जीव के द्वारा पुनः नोकर्म रूप से ग्रहण किये जाते हैं तो उतने काल के परिमाण को नोकर्मद्रव्य-परिवर्तन कहते हैं।
कर्मद्रव्य-परिवर्तन --- इसी प्रकार एक जीव ने एक समय में आठ प्रकार के कर्म रूप होने के योग्य कुछ पुद्गल ग्रहण किये और एक समय अधिक एक आवली के बाद उनकी निर्जरा कर दी। पूर्वोक्त क्रम से वे ही पूदगल उसी प्रकार से जब उसी जीव के द्वारा ग्रहण किये जाते हैं, तो उतने काल को कर्मद्रव्य-परिवर्तन कहते हैं। नोकर्मद्रव्य-परिवर्तन और कर्मद्रव्य-परिवर्तन को मिलाकर एक द्रव्यपरिवर्तन या पुद्गल परिवर्तन होता है और दोनों में से एक को अर्धपुद्गलपरिवर्तन कहते हैं ।
क्षेत्रपरिवर्तन सबसे जघन्य अवगाहना का धारक सूक्ष्म निगोदिया जीव
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