Book Title: Karmagrantha Part 5 Shatak
Author(s): Devendrasuri, Shreechand Surana, Devkumar Jain Shastri
Publisher: Marudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur
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परिशिष्ट-१ आहारसत्तगं वा सव्वगुणे वितिगृणे विणा तित्थं । नोभयसंते मिच्छो अंतमुहत्त भवे तित्थे ।।१२।। केवलजुयलावरणा पणनिद्दा वारसाइमकसाया । मिच्छं ति सव्वघाइ चउणाणतिदसणावरणा ।।१३।। संजलण नोकसाया विग्धं इय देसघाइय अघाई । पत्त यतणुट्ठाऊ तसवीसा गोयदुग वन्ना ॥१४॥ सुरनरतिगुच्च सायं तसदस तणुवंगवइरचउरंसं । परघासग तिरिआऊं वन्नचउ पणिदि सुभखगइ ।।१५।। बायालपुन्नपगई अपढमसंठाणखगइसंघयणा । तिरियदुग असायनीयोवघाय इगविगल निरयतिगं ॥१६।। थावरदस वन्नचउक्क घाइपणयालसहिय बासीई । पावपयडित्ति दोसुवि वन्नाइगहा सुहा असुहा ।।१७।। नामधुवबंधिनवर्ग दंसण पणनाणविग्घ परघायं । भयकुच्छमिच्छसासं जिण गुणतीसा अपरियत्ता ।।१८।। तणुअट्ठ वेय दुजुयल कसाय उज्जोयगोयदुग निद्दा । तसवीसाउ परित्ता खित्त विवागाऽणुपुब्बीओ।।१६।। घणघाइ दुगोय जिणा तसियरतिग सुभगदुभगचउ सासं । जाइतिग जियविवागा आऊ चउरो भवविवागा ।।२०।। नामधुवोदय चउतणु बघायसाहारणियर जोयतिगं। पुग्गलविवागि बंधो पयइठिइरसपएसत्ति ।।२१।। मूलपयडीण अद्वसत्तछेगबंधेसु तिन्नि भूगारा। अप्पतरा तिय चउरो अवट्ठिया ण हु अवत्तव्वो ॥२२॥ एगादहिगे भूओ एगाईऊणगम्मि अप्पतरो। तम्मत्तोऽवट्ठियओ पढमे समए अवत्तव्यो ।।२३।। नव छ चउ दंसे दुदु तिदु मोहे दु इगवीस सत्तरस । तेरस नव पण चउ ति दु इक्को नव अट्ठ दस दुन्नि ॥२४।।
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