Book Title: Karmagrantha Part 5 Shatak
Author(s): Devendrasuri, Shreechand Surana, Devkumar Jain Shastri
Publisher: Marudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur

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Page 462
________________ पंचम कर्मग्रन्थ ४१५ भंगों को और बाईस के छह भंगों को परस्पर गुणा करने पर ४४६=२४ भुजाकार होते हैं । तीसरे गुणस्थान में बारह भुजाकार होते हैं। क्योंकि सत्रह को बांधकर बाईस का बंध करने पर २x६=१२ भंग होते हैं । चौथे में बीस भुजाकार होते हैं, क्योंकि सत्रह का बंध करके इक्कीस का बन्ध होने पर २४४ =८ और बाईस का बन्ध होने पर २x६=१२, इस प्रकार १२+८=२० भंग होते है । पांचवें गुणस्थान में चौबीस भुजाकार होते हैं, क्योंकि तेरह का बन्ध करके सत्रह का बन्ध होने पर २४ २=४, इक्कीस का बंध होने पर २४४=८ और बाईस का बंध होने पर २४६=१२ इस प्रकार ४++१२-२४ भंग होते हैं। छठे में अट्ठाईस भुजाकार होते हैं. क्योंकि नौ का बन्ध करके तेरह का बन्ध करने पर २ ५ २=४, सत्रह का बंध करने पर २४२-४, इक्कीस का बंध करने पर २४४=८ और बाईस का बन्ध करने पर २४६-१२, इस प्रकार ४+४+ +१२= २८ भंग होते हैं। सातवें में दो भुजाकार होते हैं, क्योंकि सातवें में एक भंग सहित नौ का बंध करके मरण होने पर दो भंग सहित सत्रह का बंध होता है । आठवें गुणस्थान में भी सातवें के समान ही दो भुजाकार होते हैं। नौवें गुणस्थान में पांच, चार आदि पांच बंधस्थानों में से प्रत्येक के तीन-तीन भुजाकर होते हैं, जो एक-एक गिरने की अपेक्षा से और दो-दो मरने की अपेक्षा से । इस प्रकार एकसौ सत्ताईस भुजा. कार बंध होत हैं। पैंतालीस अल्पतर बंध इस प्रकार हैं अप्पदरा पुण तीसं गम णभ छद्दोणि दोण्णि णम एक्कं । थूले पणगादीणं एक्केक्कं अंतिमे सुण्णं ॥ ४७३ पहले गुणस्थान में तीस अल्पतर बंध होते हैं, उसके आगे दूसरे गुणस्थान से लेकर अपूर्वकरण गुणस्थान तक क्रम से शून्य, शून्य, ६, २, २, शून्य, १ प्रकृति रूप अल्पतर बंध हैं । नौवें गुणस्थान में पांच आदि प्रकृति रूप का एक, एक ही अल्पतर बंध होता है किन्तु अंत के पांचवें भाग में शून्य अर्थात् अल्पतर बंध नहीं होता है । इसका स्पष्टीकरण निम्न प्रकार है पहले मिथ्यात्व गुणस्थान में तीस अल्पतर बंध होते हैं, क्योंकि बाईस को बांधकर सत्रह का बंध करने पर ६x२=१२, तेरह का बंध करने पर ६४२ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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