Book Title: Karmagrantha Part 5 Shatak
Author(s): Devendrasuri, Shreechand Surana, Devkumar Jain Shastri
Publisher: Marudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur
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परिशिष्ट-२
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वरण से अधिक, ४. श्रुतज्ञानावरण का उससे अधिक और ५. मतिज्ञानावरण का उससे अधिक भाग है ।
दर्शनावरण- १. प्रचला का सबसे कम भाग है, २. निद्रा का उससे अधिक, ३. प्रचलाप्रचला का उससे अधिक, ४. निद्रा-निद्रा का उससे अधिक, ५. स्त्याafa का उससे अधिक, ६. केवलदर्शनावरण का उससे अधिक, ७. अवधिज्ञानावरण का उससे अनन्तगुणा, ८ अचक्षुदर्शनावरण का उससे अधिक और ६. चक्षुदर्शनावरण का उससे अधिक भाग होता है ।
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वेदनीय- - असाता वेदनीय का सबसे कम और सत्ता वेदनीय का उससे अधिक द्रव्य होता है ।
मोहनीय - १. अप्रत्याख्यानावरण मान का सबसे कम, २. अप्रत्याख्यानावरण क्रोध का उससे अधिक, ३. अप्रत्याख्यानावरण माया का उससे अधिक और ४. अप्रत्याख्यानावरण लोभ का उससे अधिक भाग है । इसी प्रकार ५ ८. प्रत्याख्यानावरण चतुष्क का (मान, क्रोध, माया और लोभ के क्रम से) उत्तरोत्तर भाग अधिक है। उससे ६ - १२. अनन्तानुबंधी चतुष्क का उत्तरोत्तर भाग अधिक है। उससे १३. मिथ्यात्व का भाग अधिक है । मिथ्यात्व से १४. जुगुप्सा का भाग अनन्तगुणा है, उससे १५. भय का भाग अधिक है, १६, १७. हास्य और शोक का उससे अधिक किन्तु आपस में बराबर १५, १६. रति और अरति का उससे अधिक किन्तु आपस में बराबर, २०, २१. स्त्री और नपुंसकवेद का उससे अधिक किन्तु आपस में बराबर २२. संज्वलन क्रोध का उससे अधिक २३. संज्वलन मान का उससे अधिक, २४. पुरुषवेद का उससे अधिक, २५. संज्वलन माया का उससे अधिक और २६. संज्वलन लोभ का उससे असंख्यात गुणा भाग है ।
आयुकर्म - चारों प्रकृतियों का समान ही भाग होता है, क्योंकि एक ही बंधती है ।
नामकर्म - गति नामकर्म में देवगति और नरकगति का सबसे कम किन्तु परस्पर में बराबर, मनुष्यगति का उससे अधिक और तिर्यंचगति का उससे अधिक भाग है ।
जाति नामकर्म में -- द्वीन्द्रिय आदि चार जातियों का सबसे कम किन्तु आपस में बराबर और एकेन्द्रिय जाति का उससे अधिक भाग है ।
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