Book Title: Karmagrantha Part 5 Shatak
Author(s): Devendrasuri, Shreechand Surana, Devkumar Jain Shastri
Publisher: Marudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur
View full book text
________________
परिशिष्ट - २
ज्ञानावरण, दर्शनावरण, इन तीन घातिया कर्मों का भाग आपस में समान है लेकिन नाम, गोत्र के भाग से अधिक है । इससे अधिक मोहनीय कर्म का भाग है तथा मोहनीय से भी अधिक वेदनीय कर्म का भाग है। जहां जितने कर्मों का बंध हो वहां उतने ही कर्मों में विभाग कर लेना चाहिये। विभाग करने की रीति यह है-
४२६
बहुभागे समभागो अट्ठण्हं होदि एक्कभागम्हि ।
उत्तको तत्थवि बहुभागो बहुगस्स देओ दु ।। १६५
बहुभाग के समान भाग करके आठों कर्मों को एक-एक भाग देना चाहिए । शेष एक भाग में पुन: बहुभाग करना चाहिए और वह बहुभाग बहुत हिस्से वाले कर्म को देना चाहिए ।
इस रीति के अनुसार एक समय में जितने पुदगल द्रव्य का बंध होता है, उसमें आवली के असंख्यातवें भाग से भाग देकर एक भाग को अलग रखना चाहिए और बहुभाग के आठ समान भाग करके आठों कर्मों को एक-एक भाग देना चाहिए । शेष एक भाग में पुनः आवली के असंख्यातवें भाग से भाग देकर एक भाग को अलग रखकर बहुभाग वेदनीय कर्म को देना चाहिए, क्योंकि सबसे अधिक भाग का स्वामी वही है । शेष भाग में पुनः आवली के असंख्यातवें भाग से भाग देकर एक भाग को जुदा रखकर बहुभाग मोहनीय कर्म को उसकी स्थिति अधिक होने से देना चाहिए । शेष एक भाग में पुनः आवली के असंख्यातवें भाग से भाग देकर एक भाग को जुदा रख बहुभाग के तीन समान भाग करके ज्ञानावरण, दर्शनावरण और अंतराय कर्म को एक-एक भाग देना चाहिए । शेष एक भाग में पुनः आवली के असंख्यातवें भाग का भाग देकर एक भाग को जुदा रख बहुभाग के दो समान भाग करके नाम और गोत्र कर्म को एक, एक भाग देना चाहिए । शेष एक भाग आयुकर्म को देना चाहिए । इस प्रकार पहले बटबारे में और दूसरे बटवारे में प्राप्त अपने-अपने द्रव्य का संकलन करने से अपने-अपने भाग का परिमाण आता है। यानी ग्रहण किये हुए द्रव्य में से उतने परमाणु उस उस कर्म रूप होते हैं ।
पूर्वोक्त कथन को उदाहरण द्वारा स्पष्ट करते हैं कि एक समय पुद्गल द्रव्य का बंध होता है, उसका परिमाण २५६०० है और
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
में जितने आवली के
www.jainelibrary.org