Book Title: Karmagrantha Part 5 Shatak
Author(s): Devendrasuri, Shreechand Surana, Devkumar Jain Shastri
Publisher: Marudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur
View full book text ________________
परिशिष्ट-१ पंचम कर्मग्रन्थ की मूल गाथायें नमिय जिणं धुवबंधोदयसत्ताघाइपुन्नपरियत्ता । सेयर चउहविवागा बुच्छं बन्धविह सामी य ॥१॥ वन्नचउतेयकम्मागुरुलहु निमणोवघाय भयकुच्छा । मिच्छकसायावरणा विग्छ धुवबंधि सगचता ॥२॥ तणुवंगागिइसंघयण जाइगइखगइपुव्विजिणुसासं । उज्जोयायवपरघा तसवीसा गोय वेयणियं ।।३।। हासाइजुयलदुगवेय आउ तेवुत्तरी अधुवबंधा । भंगा अणाइसाई अणंतसंत्त त्तरा चउरो॥४॥ पढमविया धुवउदइसु धुवबंधिसु तइअवज्जभंगतिगं । मिच्छम्मि तिन्नि भंगा दुहावि अधुवा तुरिअभंगा ॥५॥ निमिण थिर अथिर अगुरुय सुहअसुहं तेय कम्म चउवन्ना। नाणंतराय दंसण मिच्छ धुवउदय सगवीसा ॥६॥ थिर-सुभियर विणु अधुवबंधी मिच्छ विणु मोहधुवबंधी। निद्दोवघाय मीसं सम्म पणनवइ अधुवुदया ।।७।। तसवन्नवीस सगतेय-कम्म धुवबंधि सेस वेयतिगं । आगिइतिग वेयणियं दुजुयल सगउरल सासचऊ ।।८।। खइगतिरिदुग नीयं धुवसंता सम्म मीस मणुयदुगं । विउविक्कार जिणाऊ हारसगुच्चा अधुवसंता ।।। पढमतिगुणेसु मिच्छं नियमा अजयाइअट्ठगे भज्जं । सासाणे खलु सम्म संतं मिच्छाइदसगे वा ।।१०।। सासणमीसेसु धुवं मीस मिच्छाइनवसु भयणाए । आइदुगे अण नियमा भइया मीसाइनवगम्मि ॥११॥
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org
Loading... Page Navigation 1 ... 446 447 448 449 450 451 452 453 454 455 456 457 458 459 460 461 462 463 464 465 466 467 468 469 470 471 472 473 474 475 476 477 478 479 480 481 482 483 484 485 486 487 488 489 490 491 492 493 494 495 496 497 498 499 500 501 502 503 504