Book Title: Karmagrantha Part 5 Shatak
Author(s): Devendrasuri, Shreechand Surana, Devkumar Jain Shastri
Publisher: Marudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur
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पंचम कर्मग्रन्थ
३३६ ___मोहनीय कर्म के उत्कृष्ट प्रदेशबंध होने के बारे में गाथा में संकेत दिया है कि -बितिगुण विणु मोहि सत्त मिच्छाई-दूसरे और तीसरे गुणस्थान को छोड़कर मिथ्यात्व आदि सात गुणस्थानों में मोहनीय कर्म का उत्कृष्ट प्रदेशबंध होता है। अर्थात् मिथ्यात्व, अविरत, देशविरति, प्रमत्त, अप्रमत्त, अपूर्वकरण और अनिवृत्तिकरण, इन सात गुणस्थानों में मोहनीय कर्म का उत्कृष्ट प्रदेशबंध बतलाया है । सासादन और मिश्र गुणस्थान में उत्कृष्ट योग नहीं होता है, जिससे वहां उत्कृष्ट प्रदेशबंध भी नहीं होता है। ___ सासादन में उत्कृष्ट योग न होने के संबंध में ऊपर संकेत किया जा चुका है और मिश्र गुणस्थान में भी उत्कृष्ट योग न होने का कारण यह बतलाया गया है कि दूसरी कषाय का उत्कृष्ट प्रदेशबंध अविरत गुणस्थान में बतलाया गया है । यदि मिश्र में भी उत्कृष्ट योग होता तो उसमें भी दूसरी कषाय का उत्कृष्ट प्रदेशबंध बतलाया जाता। यदि यह कहा जाये कि अविरत गुणस्थान में मिश्र गुणस्थान से कम प्रकृतियां बंधती हैं अतः अविरत को ही उत्कृष्ट प्रदेशबंध का स्वामी बतलाया है, लेकिन यह युक्ति ठीक नहीं है, क्योंकि साधारण अवस्था में अविरत में भी सात ही कर्मों का बंध होता है और मिश्र में तो सात कर्मों का बंध होता ही है तथा अविरत में भी मोहनीय की सत्रह प्रकृतियों का बंध होता है और मिश्र में भी उसकी सत्रह प्रकृतियों का बंध होता है । अतः मिश्र में उत्कृष्ट प्रदेशबंध को न बतलाने में उत्कृष्ट योग का अभाव कारण है ।
आयु और मोहनीय के सिवाय शेष छह कर्मों-ज्ञानावरण, दर्शनावरण, वेदनीय, नाम, गोत्र और अंतराय का उत्कृष्ट प्रदेशबंध सूक्ष्मसंपराय नामक दसवें गुणस्थान में होता है। सूक्ष्मसंपराय में उत्कृष्ट योग तो होता ही है तथा थोड़े कर्मों का बंध होने के कारण उसका ही ग्रहण किया है।
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