Book Title: Karmagrantha Part 5 Shatak
Author(s): Devendrasuri, Shreechand Surana, Devkumar Jain Shastri
Publisher: Marudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur
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पंचम कर्मग्रन्थ
. ३५५
णिया-अनन्तगुणे, तओ - उनसे भी, रसच्छेया-रसच्छेद-रस के अविभाग प्रतिच्छेद।
___ गाथार्थ-योगस्थान श्रोणि के असंख्यातवें भाग हैं । उनसे प्रकृतियों के भेद, स्थितिभेद, स्थितिबंध के अध्यवसायस्थान और अनुभाग बंध के अध्यवसायस्थान अनुक्रम से असंख्यातगुणे, असंख्यातगुणे हैं। उनसे भी कर्म के स्कंध अनंतगुणे हैं और कर्मस्कंधों से भी रसच्छेद अनंतगुणे हैं। .
विशेषार्थ—गाथा में बंध के भेदों और उनके कारणों का अल्पबहत्व बतलाया है। इस निरूपण में निम्नलिखित सात चीजों का ग्रहण किया गया है
(१) प्रकृतिभेद, (२) स्थितिभेद, (३) प्रदेशभेद, (४) रसच्छेद अर्थात् अनुभागभेद, (५) योगस्थान, (६) स्थितिबंध-अध्यवसायस्थान और (७) अनुभागबंध-अध्यवसायस्थान । इन सात भेदों में बंध के चार भेद और तीन उनके कारण भेद हैं। बंध के तो चार भेद माने हैं किन्तु कारण के तीन भेद मानने का कारण यह है कि प्रकृति और प्रदेश बंध का कारण एक ही है । इसीलिये कारण के भेद चार के बजाय तीन ही किये गये हैं। यहां इन सातों का अल्पबहुत्व बतलाया. है कि कौन किससे कम और कौन अधिक है । यानी सातों में से किसकी संख्या अधिक है और किसकी संख्या कम है।
· इस अल्पबहुत्व का कथन प्रारंभ करते हुए सर्व प्रथम बताया है कि योगस्थानों की संख्या श्रोणि के असंख्यातवें भाग है -सेढि असंखिज्जंसे जोगट्ठाणाणि-अर्थात् श्रेणि के असंख्यातवें भाग में आकाश के जितने प्रदेश हैं उतने ही योगस्थान जानना चाहिये। यह पहले बतला आये हैं, कि वीर्य या शक्तिविशेष को योग कहते हैं और सबसे जमान योग सूक्ष्म निगोदिया. लब्ध्यपर्याप्तक जीप को भव के. प्रथम
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