Book Title: Karmagrantha Part 5 Shatak
Author(s): Devendrasuri, Shreechand Surana, Devkumar Jain Shastri
Publisher: Marudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur
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३२२
মান
ऊर्ध्वरेणु, आठ ऊर्ध्वरेणु का एक त्रसरेणु, आठ त्रसरेणु का एक रथरेणु, आठ रथरेणु का देवकुरु और उत्तरकुरु क्षेत्र के मनुष्य का एक केशाग्र, उन आठ केशानों का एक हरिवर्ष और रम्यक क्षेत्र के मनुष्य का केशाग्र, उन आठ केशानों का एक पूर्वापर विदेह के मनुष्य का केशान, उन आठ केशानों का एक भरत और ऐरावत क्षेत्र के मनुष्यों का केशाग्र, उन आठ केशारों की एक लीख, आठ लीख की एक यूका (ज), आठ यूका का एक यव का मध्य भाग और आठ यवमध्य का एक उत्सेधांगुल होता है।।
छह उत्सेधांगुल का एक पाद, दो पाद की एक वितस्ति, दो वितस्ति का एक हाथ, चार हाथ का एक धनुष, दो हजार धनुष का एक गव्यूत और चार गव्यूत का एक योजन होता है ।
प्रमाणांगुल-उत्सेधांगुल से अढ़ाई गुणा विस्तार वाला और चार सौ गुणा लम्बा प्रमाणांगुल होता है । युग के आदि में भरत चक्रवर्ती का जो आत्मांगुल था उसको प्रमाणांगुल जानना चाहिये ।' _दिगम्बर साहित्य में अंगुलों का प्रमाण इस प्रकार बतलाया है-- अनन्तानंत सूक्ष्म परमाणुओं की उत्संज्ञासंज्ञा, आठ उत्संज्ञासंज्ञा की एक संज्ञासंज्ञा, आठ संज्ञासंज्ञा का एक त्रुटिरेणु, आठ त्रुटिरेणु का एक त्रसरेणु, आठ त्रसरेणु का एक रथरेणु, आठ रथरेणु का उत्तरकुरु देवकुरु के मनुष्य का एक बालाग्र, उन आठ बालानों का रम्यक और हरिवर्ष के मनुष्य का एक बालाग्र, उन आठ बालारों का हैमवत और हैरण्यवत के मनुष्य का एक बालाग्र, उन आठ बालानों का भरत, ऐरावत व विदेह के मनुष्यों का एक बालाग्र तथा लीख, यूका आदि
१ अनुयोगद्वार सूत्र पृ० १५६-१७२, प्रवचनसारोद्धार पृ० ४०५-८, द्रव्यलोक
प्रकाश पृ० १-२ ।
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