Book Title: Karmagrantha Part 5 Shatak
Author(s): Devendrasuri, Shreechand Surana, Devkumar Jain Shastri
Publisher: Marudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur
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पचम कर्मग्रन्थ
३२६ द्रव्यपुद्गल परावर्त के बारे में किन्हीं-किन्हीं आचार्यों का मत है कि
अहव इमो दवाई ओराल विउव्वतेयकम्मेहिं ।
नोसेसदव्वगहणं मि वायरो होइ परियट्टो ॥' एके तु आचार्या एवं द्रव्यपुदगलपरावर्तस्वरूपं प्रतिपादयन्ति--तथाहि, यदैको जीवोऽनेकर्भवग्रहणरौदारिकशरीरक्रियशरीरतैजसशरीरकार्मणशरीरचतुष्टयरूपतया यथास्वं सकललोकवतिनः सर्वान् पुद्गलान परिणमय्य मुञ्चति तदा बादरो द्रव्यपुद गलपरावर्तो भवति । यदा पुनरौदारिकादिचतुष्टयमध्यादेकेन केनचिच्छरीरेण सर्वपुद्गलान् परिणमय्य मुञ्चति शेषशरीरपरिणमितास्तु पुदगला न गृह्यन्ते एव तदा सूक्ष्मो द्रव्यपुद्गलपरावर्ती भवति ।
समस्त पुद्गल परमाणुओं को औदारिक, वैक्रिय, तैजस और कार्मण इन चार शरीर रूप ग्रहण करके छोड़ देने में जितना काल लगता है, उसे बादर द्रव्यपुद्गल परावर्त कहते हैं और समस्त पुद्गल परमाणुओं को उक्त चारों शरीरों में से किसी एक शरीर रूप परिणमा कर छोड़ देने में जितना काल लगता है, उतने काल को सूक्ष्म द्रव्यपुद्गल परावर्त कहते हैं। ___ इस प्रकार से बादर और सूक्ष्म दोनों प्रकार के द्रव्यपुद्गल परावर्त के स्वरूप को बतलाने के बाद अब क्षेत्र, काल और भावपुद्गल परावर्तों का स्वरूप बतलाते हैं। द्रव्यपुद्गल परावर्त के समान ही क्षेत्र, काल और भाव पुद्गल परावर्तों में से प्रत्येक के सूक्ष्म और बादर यह दो-दो प्रकार हैं।
सामान्य तौर पर जीव द्वारा लोकाकाश के समस्त प्रदेशों का
१ प्रवचन गा० ४१
१ पंचम कर्मग्रन्थ स्वोपज्ञ टीका, पृ० १०३ Jain Education International For Private & Personal Use Only
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