Book Title: Karmagrantha Part 5 Shatak
Author(s): Devendrasuri, Shreechand Surana, Devkumar Jain Shastri
Publisher: Marudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur
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पचम कमग्रन्थ
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के कारण उनका बंध नहीं हुआ। वहां मरते समय क्षयोपशम सम्यक्त्व को प्राप्त करके मनुष्यगति में जन्म लेकर महाव्रत धारण करके दो बार विजयादिक में जन्म लेकर पुनः मनुष्य हुआ। वहां अन्तमुहूर्त के लिये सम्यक्त्व से च्युत होकर तीसरे मिश्र गुणस्थान' में चला गया । पुनः क्षयोपशम सम्यक्त्व को प्राप्त करके तीन बार अच्युत स्वर्ग में जन्म लिया। इस प्रकार ग्रे वेयक के ३१ सागर, विजयादिक में दो बार जन्म लेने के ६६ सागर और तीन बार अच्युत स्वर्ग में जन्म लेने से वहां के ६६ सागर मिलाने से १६३ सागर होते हैं। इसमें देवकुरु भोगभूमिज की आयु तीन पल्य, देवगति की आयु एक पल्य इस प्रकार चार पल्य और मिला देना चाहिए । बीच में जो मनुष्यभव धारण किये उन्हें भी उस में जोड़कर मनुष्यभव सहित चार पल्य अधिक एक सौ त्रेसठ सागरोपम उक्त सात प्रकृतियों का अबंधकाल होता है। १ कार्म ग्रन्थिक मत से चौथे गुणस्थान से च्युत होकर जीव तीसरे गुणस्थान में आ सकता है। लेकिन सैद्धांतिक मत इसके विरुद्ध है-- मिच्छत्ता संकंती अविरुद्धा होई सम्ममी सेसु । मीसाउ वा दोसूसम्मा मिच्छं न उण मीसं ।। ----वहत्क० भाष्य ११४ --जीव मिथ्यात्व गुणस्थान से तीसरे और चौथे गुणस्थान में जा सकता है, इस में कोई विरोध नहीं है तथा मिश्र गुणस्थान से भी पहले और चौथे गुणस्थान में जा सकता है, किंतु सम्यक्त्व से च्युत होकर मिथ्यात्व में जा सकता है, मिश्र गुणस्थान में नहीं जा सकता है।
पलियाई तिनि भोगावणिम्मि भवपच्चयं पलियमेगं । सोहम्मे सम्मनेण नरभवे सव्वविरईण ॥ मिच्छी भवपच्चयओ गेविज्जे सागराइं इगतीसं । अंतमुहत्तूणाई सम्मत्तं तम्मि लिहिऊणं ।। विर यनरभवंतरिओ अणुत्तरमुरो उ अयर छाबट्टी । मिस्सं मुहत्तमेगं फामिय मणुओ पुणो विरओ ॥ छावट्ठी अयराणं अच्चुयए विरयन रभवंतरिओ । तिरिन रयति गुज्जोयाण एस कालो अबंधमि ।।
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