Book Title: Karmagrantha Part 5 Shatak
Author(s): Devendrasuri, Shreechand Surana, Devkumar Jain Shastri
Publisher: Marudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur
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पंचम कर्मग्रन्थ
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उवलना करता है यानी दोनों प्रकृतियों के दलिकों को मिथ्यात्व मोहनीय रूप परिणमाता रहता है ।
इस प्रकार उद्बलन करते-करते पल्य के असंख्यातवें भाग काल में उक्त दोनों प्रकृतियों का अभाव हो जाता है और अभाव होने पर वही जीव पुनः औपशमिक सम्यक्त्व को प्राप्त कर सासादन गुणस्थान में आ जाता है । इसीलिए सासादन गुणस्थान का अंतराल काल पल्य के असंख्यातवें भाग माना गया है ।
सासादन गुणस्थान का जघन्य अन्तर पल्य के असंख्यातवें भाग प्रमाण बतलाने का कारण यह है कि कोई जीव उपशम श्रेणि से गिरकर सासादन गुणस्थान में आते हैं और अन्तर्मुहूर्त के बाद पुनः उपशम श्र ेणि पर चढ़कर और वहां से गिरकर पुनः सासादन गुणस्थान में आते हैं । इस दृष्टि से तो सासादन का जघन्य अंतर बहुत थोड़ा रहता है, किन्तु उपशम श्र ेणि से च्युत होकर जो सासादन सम्यक्त्व की प्राप्ति होती है, वह केवल मनुष्यगति में ही संभव है और वहां पर भी इस प्रकार की घटना बहुत कम होती है, जिससे यहां उसकी विवक्षा नहीं की है किन्तु उपशम सम्यक्त्व से च्युत होकर जो सासादन की प्राप्ति बतलाई है, वह चारों गतियों में संभव है। अतः उसकी अपेक्षा से ही सासादन का जघन्य अन्तर पल्य के असंख्यातवें भाग बतलाया है। यानी श्रेणि की अपेक्षा नहीं किन्तु उपशम सम्यक्त्व से च्युत होने की अपेक्षा से सासादन गुणस्थान का जघन्य अन्तर पल्य के असंख्यातवें भाग बतलाया है ।
सासादन के सिवाय बाकी के गुणस्थानों में से क्षीणमोह, सयोगिकेवली और अयोगिकेवली, इन तीन गुणस्थानों का तो अंतर काल नहीं होता, क्योंकि ये गुणस्थान एक बार प्राप्त होकर पुनः प्राप्त नहीं होते हैं। शेष रहे गुणस्थानों में से मिथ्यादृष्टि, मिश्र दृष्टि, अविरत सम्यग् -
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