Book Title: Karmagrantha Part 5 Shatak
Author(s): Devendrasuri, Shreechand Surana, Devkumar Jain Shastri
Publisher: Marudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur
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शतक
और गोत्र कर्म से अधिक हिस्सा मिलता है। क्योंकि नाम और गोत्र कर्म की स्थिति तो बीस-बीस कोडाकोड़ो सागर है जबकि अन्तराय आदि तीन कर्मों में से प्रत्येक की स्थिति तीस-तीस कोड़ाकोड़ी सागर है । लेकिन इन तीनों कर्मों की स्थिति समान होने से उनका भाग आपस में बराबर-बराबर है । इन तीनों कर्मों से मोहनीय कर्म का भाग अधिक है, क्योंकि उसकी स्थिति सत्तर कोड़ाकोड़ी सागर की है। __इस प्रकार वेदनीय कर्म के सिवाय शेष सात कर्मों को उनकी स्थिति के अनुसार क्रमशः अधिक पुद्गलस्कन्धों के प्राप्त होने को बतलाया । अब वेदनीय कर्म को अधिक द्रव्य मिलने के कारण को स्पष्ट करते हैं - सब्बोवरि वेयणीय । क्योंकि बहुत द्रव्य के बिना वेदनीय कर्म के सुख दुःख आदि का अनुभव स्पष्ट नहीं होता है । अल्प द्रव्य मिलने पर वेदनीय कर्म अपने सुख-दुःख का वेदन कराने रूप कार्य करने में समर्थ नहीं होता है-जेणप्पे तस्स फुडत्त न हवई । किन्तु अधिक द्रव्य मिलने पर ही वह अपना कार्य करने में समर्थ है।' वेदनोय कर्म को अधिक द्रव्य मिलने का कारण यह है कि सुख-दुःख के निमित्त से वेदनीय कर्म की निर्जरा अधिक होती है । अर्थात् प्रत्येक जीव प्रतिसमय सुख-दुःख का वेदन करता है, जिससे वेदनीय कर्म का उदय प्रतिक्षण होने से उसकी निर्जरा भी अधिक होती है । इसी
१ कममो वुड्ढठिईणं भागो दलियस्स होइ सविमेसो । त इयस्स सबजट्ठो तस्स फुडनं जओणप्पे ।।
--पंचसंग्रह २-५ अधिक स्थिति वाले कर्मों का भाग क्रम से अधिक होता है किन्तु वेदनीय का भाग सबसे ज्येष्ठ होता है क्योंकि अल्प दल होने पर उसका व्यक्त अनुभव नहीं हो सकता है।
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