Book Title: Karmagrantha Part 5 Shatak
Author(s): Devendrasuri, Shreechand Surana, Devkumar Jain Shastri
Publisher: Marudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur
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पंचम कर्मग्रन्थ
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और सर्वविरति जीव करते हैं।' अविरत सम्यग्दृष्टि जीव तो चारों गति के लेना चाहिये और देशविरति मनुष्य व तिर्यच होते हैं तथा सर्वविरति मनुष्य ही होते हैं। ___ जो जीव अनन्तानुबन्धी कषाय का विसंयोजन करने के लिये उद्यत होता है वह यथाप्रवृत्त आदि तीनों करणों को करता है। यहां इतनी विशेषता है कि अपूर्वकरण के प्रथम समय से ही गुणसंक्रमण भी होने लगता है यानी अपूर्वकरण के प्रथम समय में अनन्तानुबन्धी कषाय के थोड़े दलिकों का शेष कषायों में संक्रमण करता है, दूसरे समय में उससे असंख्यातगुणे, तीसरे समय में उससे असंख्यातगुणे दलिकों का पर कषाय रूप संक्रमण करता है। यह क्रिया अपूर्वकरण के अंतिम समय तक होती है और उसके बाद अनिवृत्तिकरण में गुणसंक्रमण और उद्वलन संक्रमण के द्वारा दलिकों का विनाश कर देता है। इस प्रकार अनन्तानुबन्धी के विसंयोजन में प्रति समय असंख्यात'गुणी निर्जरा जाननी चाहिये । ___दर्शनमोहनीय का क्षपण जिन काल में (केवलज्ञानी के विद्यमान रहने के समय में) उत्पन्न होने वाला वज्रऋषभनाराच संहनन का धारक मनुष्य आठ वर्ष की उम्र के बाद करता है। अर्थात् दर्शनमोहनीय की क्षपणा के लिये समय तो केवलज्ञान प्राप्त आत्मा की विद्यमानता का है और क्षपणा करने वाला मनुष्य वज्रऋषभनाराच संहनन का धारक हो तथा कम-से-कम अवस्था आठ वर्ष से ऊपर
चउगइया पज्जता तिन्निवि संयोयणा विजोयंति । करणेहिं तीहिं सहिया नंतरकरणं उवसमो वा ।।
-कर्मप्रकृति उपशमनाकरण ३१ दसणमोहे वि तहा कयकरणद्धा य पच्छिमे होइ । विणकालगो मणुस्सो पट्ठवगो अट्ठवासुप्पि ॥
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