Book Title: Karmagrantha Part 5 Shatak
Author(s): Devendrasuri, Shreechand Surana, Devkumar Jain Shastri
Publisher: Marudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur
View full book text
________________
पचम कर्मग्रन्थ
२८७ होते हैं और ग्यारहवें आदि गुणस्थानों से एक सातावेदनीय कर्म का बंध होता है । अतः उस समय ग्रहण किये हुए कर्मस्कन्ध उस एक कर्म रूप ही हो जाते हैं। ___इस प्रकार ग्रहण किये हुए कर्मस्कन्धों का आठों कर्मों में विभाजित होने का क्रम समझना चाहिये। अब प्रत्येक कर्म को मिलने वाले हिस्से का स्पष्टीकरण करते हैं कि अपनी-अपनी कालस्थिति के अनुसार प्रत्येक कर्म को ग्रहण किये हुए कर्मस्कन्धों का हिस्सा मिलता है। यानी जिस कर्म की स्थिति कम है तो उसे कम और अधिक स्थिति है तो उसे अधिक हिस्सा मिलेगा। लेकिन यह सामान्य नियम वेदनीय कर्म को छोड़कर शेष सात कर्मों पर लागू होता है। वेदनीय कर्म को अधिक हिस्सा मिलने के कारण को आगे स्पष्ट किया जा रहा है। ___ सबसे कम स्थिति आयुकर्म की होने से सर्वप्रथम आयुकर्म से कर्मस्कन्धों के विभाजन को स्पष्ट किया जा रहा है कि - 'थेवो आउ' आयुकर्म का भाग सबसे थोड़ा है। इसका कारण यह है कि आयुकर्म की स्थिति सिर्फ तेतीस सागर है जबकि नाम, गोत्र आदि शेष सात कर्मों में से किसी की बीस कोड़ाकोड़ी सागर, किसी को तीस कोडाकोड़ी सागर और किसी को सत्तर कोडाकोड़ी सागर की उत्कृष्ट स्थिति है। अतः अन्य कर्मों की स्थिति की अपेक्षा आयुकर्म की स्थिति सबसे कम होने से आयुकर्म को ग्रहण किये गये कर्मस्कन्धों का सबसे कम भाग मिलता है। ___ आयुकर्म से नाम और गोत्र कर्म का हिस्सा अधिक है। क्योंकि आयुकर्म की स्थिति तो सिर्फ तेतीस सागर हो है, जबकि नाम और गोत्र कर्म की स्थिति बीस कोड़ाकोड़ी सागर प्रमाण है । नाम और गोत्र - कर्म की स्थिति समान है अतः उन्हें हिस्सा भी बराबर-बराबर मिलता है-नामे गोए समो। अन्तराय, ज्ञानावरण, दर्शनावरण कर्मों को नाम
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org