Book Title: Karmagrantha Part 5 Shatak
Author(s): Devendrasuri, Shreechand Surana, Devkumar Jain Shastri
Publisher: Marudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur
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पंचम कर्मग्रन्थ
२८ १
ऊपर तैजसशरीर आदि प्रायोग्य वर्गणाओं के स्कन्धों में केवल चार ही स्पर्श होते हैं
पञ्चरसपञ्चवण्णेहिं परिणया अट्ठफास दो गंधा । जीवाहारगजोग्गा चउफासविसेसिया उवरं ॥
अर्थात् जीव के ग्रहण योग्य औदारिक आदि वर्गणायें पांच रस, पांच वर्ण, आठ स्पर्श और दो गंध वाली होती हैं, किन्तु ऊपर की तंजस शरीर आदि के योग्य ग्रहण वर्गणायें चार स्पर्श वालो होती हैं।
द्रव्यों के दो भेद हैं -- गुरुलघु और अगुरुलघु । इन दो भेदों में वर्गणाओं का बटवारा करते हुए आवश्यक नियुक्ति में लिखा है - ओरालियव उब्वियआहारयतेय गुरुलहूदव्वा
कम्मगमणभासाइ एयाई अगुरुलहुयाई ॥४१॥
औदारिक, वैक्रिय, आहारक और तैजस द्रव्य गुरुलघु हैं और कार्मण, भाषा और मनोद्रव्य अगुरुलघु हैं । इन गुरुलघु और अगुरुलघु की पहिचान के लिये द्रव्यलोकप्रकाश सर्ग ११ श्लोक चौबीस ' में लिखा है कि आठ स्पर्शवाला बादर रूपी द्रव्य गुरुलघु होता है और चार स्पर्श वाले सूक्ष्म रूपी द्रव्य तथा अमूर्त आकाशादिक भी अगुरुलघु होते हैं । इसके अनुसार तैजस वर्गणा के गुरुलघु होने से उसमें तो आठ स्पर्श सिद्ध होते हैं और उसके बाद की भाषा, कर्म आदि वर्गओं के अगुरुलघु होने से उनमें चार स्पर्श माने जाते हैं ।
इस प्रकार से अभी तक जीव द्वारा ग्रहण किये जाने वाले कर्मस्कन्धों के स्वरूप की एक विशेषता बतलाई है कि 'अन्तिम चउफास
१ पंचसंग्रह ४१०
२ वादरमष्टस्पर्श द्रव्यं रूप्येव भवति गुरुलघुकम् ।
अगुरुलघु चतुःस्पर्श सूक्ष्मं वियदाद्यमूर्तमपि ॥
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