Book Title: Karmagrantha Part 5 Shatak
Author(s): Devendrasuri, Shreechand Surana, Devkumar Jain Shastri
Publisher: Marudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur
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पंचम कर्मग्रन्थ
२५५ पश्चात तो अस्थिरादिक का ही बंध होता है और अप्रमत्त आदि गुणस्थानों में स्थिरादिक का ही। मिथ्या दृष्टि में संक्लेश परिणामों की अधिकता है और अप्रमत्त में विशुद्ध परिणामों की अधिकता, अतः दोनों में ही अनुभाग बंध अधिक मात्रा में होता है । इसीलिए इन दोनों के सिवाय शेष बताये गये स्थानों में ही अस्थिर आदि छह प्रकृतियों का जघन्य अनुभाग बंध होता है।
तसवन्नतेयचउमणुखगइदुग पणिदिसासपरघुच्चं । संघयणागिइनपुत्थीसुभगियरति मिच्छा चउगइगा ॥७३॥
शब्दार्थ-तसवन्नतेयचउ- सचतुष्क, वर्णचतुष्क, तैजसचतुष्क, मणुखगइदुग--मनुष्य द्विक, विहायोगति द्विक, पणिदि--पंचेन्द्रिय जाति, सास-उच्छ्वास नामकर्म, परघुच्चं-पराघात नाम
और उच्च गोत्र का, संघयणागिइ-छह संहनन और छह संस्थान, नपुत्थी-नपुंसकवेद, स्त्रीवेद, सुभगियरति-सुभगत्रिक और इतर दुर्भगत्रिक का, मिच्छ - मिथ्यादृष्टि, चउगइया-चारों गति वाले ।
गाथार्थ-त्रसचतुष्क, वर्णचतुष्क, तैजसचतुष्क, मनुष्यद्विक, विहायोगतिद्विक, पंचेन्द्रिय जाति, उच्छ्वास, पराघात, उच्चगोत्र, छह संहनन, छह संस्थान, नपुसक वेद, स्त्री वेद, सुभगत्रिक, दुर्भगत्रिक का चारों गति वाले मिथ्यादृष्टि जीव जघन्य अनुभाग बंध करते हैं।
विशेषार्थ- गाथा में चालीस प्रकृतियों का नामोल्लेख कर उनके जघन्य अनुभाग बंध का स्वामी चारों गतियों के मिथ्या दृष्टि जीव को बतलाया है। इनमें से कुछ प्रशस्त और कुछ अप्रशस्त प्रकृतियां हैं । ___ त्रसचतुष्क (त्रस, बादर, पर्याप्त, प्रत्येक), वर्णचतुष्क (शुभ वर्ण, गंध, रस, स्पर्श), तैजसचतुष्क (तैजस,कार्मण, अगुरुलघु, निर्माण), पंचेन्द्रिय जाति, उच्छ्वास और पराघात ये पन्द्रह प्रकृतियां प्रशस्त हैं अतः
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