Book Title: Karmagrantha Part 5 Shatak
Author(s): Devendrasuri, Shreechand Surana, Devkumar Jain Shastri
Publisher: Marudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur
View full book text
________________
पंचम कर्म ग्रन्थ
सागरोपम उत्कृष्ट अबन्धकाल है । स्थावरचतुष्क, एकेन्द्रिय जाति, विकलेन्द्रिय और आतप नामकर्म का मनुष्य भव सहित चार पल्योपम अधिक एकसौ पचासी सागरोपम उत्कृष्ट अबन्धकाल जानना चाहिए ।
पहले संहनन और संस्थान व विहायोगति के सिवाय शेष पांच संहनन, पांच संस्थान, विहायोगति, अनंतानुबंधी कषाय, मिथ्यात्व मोहनीय, दुर्भगत्रिक, नीच गोत्र, नपुंसक वेद और स्त्री वेद की अबंधस्थिति मनुष्य भव सहित एकसौ बत्तीस सागरोपम है । इन प्रकृतियों की अबंधस्थिति पंचेन्द्रिय में जानना चाहिये ।
२०६
विशेषार्थ - इन दो गाथाओं में उन उत्तर प्रकृतियों के नाम बतलाये हैं जिनका उत्कृष्ट अबन्धकाल पंचेन्द्रियों में है । इन प्रकृतियों की कुल संख्या ४१ है जो पहले और दूसरे गुणस्थान में बंधयोग्य हैं । पहले गुणस्थान में बंधयोग्य सोलह और दूसरे गुणस्थान में बंधयोग्य पच्चीस प्रकृतियां हैं । सारांश यह है कि इन इकतालीस प्रकृतियों का बंध उन्हीं जीवों को होता है जो पहले अथवा दूसरे गुणस्थान में होते हैं । जो जीव इन गुणस्थानों को छोड़कर आगे बढ़ जाते हैं, उनके उक्त इकतालीस प्रकृतियों का बंध तब तक नहीं होता है जब तक वे पुनः उन गुणस्थानों में नहीं आते हैं । दूसरे गुणस्थान से आगे पंचेन्द्रिय जीव ही बढ़ते हैं । एकेन्द्रिय और विकलेन्द्रियों के पहले, दूसरे के सिवाय आगे के गुणस्थान नहीं होते हैं । इसीलिए गाथा में बताई गई इकतालीस प्रकृतियों के अबन्धकाल को पंचेन्द्रिय जीवों की अपेक्षा बतलाया है ।
लेकिन यह ध्यान में रखना चाहिये कि जो पंचेन्द्रिय जीव सम्यग्दृष्टि हो जाते हैं, उनके तो उक्त इकतालीस प्रकृतियों का बंध
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org