Book Title: Karmagrantha Part 5 Shatak
Author(s): Devendrasuri, Shreechand Surana, Devkumar Jain Shastri
Publisher: Marudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur
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पंचम कर्मग्रन्थ
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का होता है । उत्कृष्ट स्थितिबंध उत्कृष्ट कषाय से होता है इसीलिये उसे अच्छा नहीं कहा जाता है ।
उत्कृष्ट अनुभागबंध शुभ क्यों ?
उत्कृष्ट स्थितिबंध को जो अशुभ माना गया है, उसका कारण उत्कृष्ट कषाय है । इस पर जिज्ञासु का प्रश्न है कि स्थितिबंध की तरह अनुभागबंध भी कषाय से होता है— ठिइ अणुभागं कसायओ' इति वचनात् । अतः उत्कृष्ट स्थितिबंध की तरह उत्कृष्ट अनुभाग को भी अशुभ मानना चाहिये । क्योंकि दोनों का कारण कषाय है । किन्तु शास्त्रों में शुभ प्रकृतियों के अनुभाग को शुभ और अशुभ प्रकृतियों के अनुभाग को अशुभ बतलाया है ।
इसका समाधान यह है कि स्थिति और अनुभाग बंध का कारण कपाय अवश्य है । किन्तु दोनों में बड़ा अन्तर है । क्योंकि कषाय की तीव्रता होने पर अशुभ प्रकृतियों में अनुभाग बंध अधिक होता है और शुभ प्रकृतियों में कम तथा कषाय की मंदता होने पर शुभ प्रकृतियों के अनुभाग में अधिकता और अशुभ प्रकृतियों के अनुभाग में हीनता होती है । इस प्रकार प्रत्येक प्रकृति के अनुभाग बंध की हीनाधिकता कपाय की हीनाधिकता पर निर्भर नहीं है। किन्तु शुभ प्रकृतियों के अनुभाग बंध की होनाधिकता कषाय की तीव्रता और मंदता पर अवलंबित है और अशुभ प्रकृतियों के अनुभाग बंध की हीनता और अधिकता कषाय की मंदता और तीव्रता पर । किन्तु स्थितिबंध में यह बात नहीं है । क्योंकि कषाय की तीव्रता के समय शुभ अथवा अशुभ जो भी प्रकृतियां बंधती हैं, उन सब में स्थितिबंध अधिक होता है | अतः स्थितिबंध की अपेक्षा से कपाय की तीव्रता और मंदता का प्रभाव सभी प्रकृतियों पर एक-सा पड़ता है किन्तु अनुभाग बंध में यह बात नहीं है । अनुभाग में शुभ और अशुभ प्रकृतियों पर कषाय का अलग-अलग प्रभाव पड़ता है ।
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