Book Title: Karmagrantha Part 5 Shatak
Author(s): Devendrasuri, Shreechand Surana, Devkumar Jain Shastri
Publisher: Marudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur
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पंचम कर्मग्रन्थ
२०३
१६. उससे चतुरिन्द्रिय लब्ध्य० का उत्कृष्ट योग असंख्यात गुणा है । १७. उससे असंज्ञो पंचेन्द्रिय लब्ध्यपर्याप्त का उत्कृष्ट योग असंख्यात
गुणा है। १८. उससे संज्ञी पंचेन्द्रिय लब्ध्यपर्याप्त का उत्कृष्ट योग असंख्यात
गुणा है। १६. उससे द्वीन्द्रिय पर्याप्त का जघन्य योग असंख्यात गुणा है । २०. उससे त्रीन्द्रिय पर्याप्त का जघन्य योग असंख्यात गुणा है । २१. उससे चतुरिन्द्रिय पर्याप्त का जघन्य योग असंख्यात गुणा है। २२. उससे असंज्ञी पंचेन्द्रिय पर्याप्त का जघन्य योग असंख्यात गुणा है । २३. उससे संज्ञी पंचेन्द्रिय पर्याप्त का जघन्य योग असंख्यात गुण है। २४. उससे द्वीन्द्रिय पर्याप्त का उत्कृष्ट योग असंख्यात गृणा है। २५. उससे त्रीन्द्रिय पर्याप्त का उत्कृष्ट योग असंख्यात गुणा है । २६. उससे चतुरिन्द्रिय पर्याप्त का उत्कृष्ट योग असंख्यात गुणा है । २७. उससे असंज्ञी पंचे० पर्याप्त का उत्कृष्ट योग असंख्यात गुणा है । २८. उससे संज्ञी पंचेन्द्रिय पर्याप्त का उत्कृष्ट योग असंख्यात गुणा है । ___इस प्रकार से चौदह जीवसमासों में जघन्य और उत्कृष्ट के भेद __ से योगों के २८ स्थान होते हैं। संज्ञी पंचेन्द्रिय पर्याप्त में कुछ और
स्थान दूसरे ग्रन्थों में कहे हैं। जो इस प्रकार हैं२६. संज्ञी पंचेन्द्रिय पर्याप्त के उत्कृष्ट योग से अनुत्तरवासी देवों का . उत्कृष्ट योग असंख्यात गुणा है। ___ ३०. उससे वेयकवासी देवों का उत्कृष्ट योग असंख्यात गुणा है । ___३१. उससे भोगभूमिज तिर्यंच और मनुष्यों का उत्कृष्ट योग असंख्यात
गुणा है। ३२. उससे आहारक शरीर वालों का उत्कृष्ट योग असंख्यात गुणा है। Jain Education International For Private & Personal Use Only
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