Book Title: Karmagrantha Part 5 Shatak
Author(s): Devendrasuri, Shreechand Surana, Devkumar Jain Shastri
Publisher: Marudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur
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पंचम कर्मग्रन्थ
के देव ही कर सकते हैं, नीचे के देव नहीं करते हैं । क्योंकि एकेन्द्रिय के संहनन और अंगोपांग नहीं होने से ये दो प्रकृतियां एकेन्द्रिय योग्य नहीं हैं।
सारांश यह है कि एक सरीखे परिणाम होने पर भी गति आदि के भेद से उनमें भेद हो जाता है । जैसे कि ईशान स्वर्ग तक के देव जिन परिणामों से एकेन्द्रिय के योग्य प्रकृतियों का बंध करते हैं, वैसे ही परिणाम होने पर मनुष्य और तिर्यंच नरकगति के योग्य प्रकृतियों का बंध करते हैं।
इस प्रकार से मिथ्यादृष्टि के बंधने योग्य ११६ प्रकृतियों में से पूर्वोक्त विकलत्रिक आदि सेवात संहनन पर्यन्त २४ प्रकृतियों के सिवाय शेष ६२ प्रकृतियों का उत्कृष्ट स्थितिबंध चारों गतियों के मिथ्यादृष्टि जीव करते हैं—सेस चउगइया ।'
१ गो० कर्मकांड में भी ११६ प्रकृतियों के उत्कृष्ट स्थितिबंध के स्वामियों को बतलाते हुए लिखा है
णरतिरिया सेसा वेगुम्वियछक्कवियलसुहुमतियं । सुरणिरया ओरलियति रियदुगुज्जोवसंपत्तं ।।१३७।। देवा पुण एइंदियआदावं थावरं च सेसाणं ।
उक्कस्ससंकि लिट्टा चदुगदिया ईसिमज्झिमया ।।१३८॥ देवायु के बिना शेष तीन आयु, वैक्रियषट्क, विकलत्रिक, सूक्ष्मंत्रिक का उत्कृष्ट स्थितिबंध मि यादृष्टि मनुष्य, तिर्यंच करते हैं। औदारिकद्विक, तिर्यंचद्विक, उद्यो:, असंप्राप्तामृपा 'टका (मेवात) संहनन का उत्कृष्ट स्थितिबध मिथ्याप्टि, देव और नारक करते हैं। एकेन्द्रिय, आतप और स्थावर का उत्कृष्ट स्थितिबंध मिथ्यादृष्टि देव करते हैं। शेष प्रकृतियों का उत्कृष्ट स्थितिबंध उत्कृष्ट संक्लेश वाले मिथ्याष्टि जीव अथवा ईषत् मध्यम परिणाम वाले मिथ्यादृष्टि जीव करते हैं।
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