Book Title: Karmagrantha Part 5 Shatak
Author(s): Devendrasuri, Shreechand Surana, Devkumar Jain Shastri
Publisher: Marudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur
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पंचम कर्मग्रन्य
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अन्तःकोड़ाकोड़ी सागर से हीन स्थितिबंध होता ही नहीं है, क्योंकि ग्रन्थिभेदन करने पर ही हीन बंध होना संभव है लेकिन अभव्य संज्ञी ग्रन्थिदेश तक पहुँचता है परन्तु उसका भेदन करने में असमर्थ होने से पुनः नीचे आ जाता है। ___सासादन से अपूर्वकरण गुणस्थान तक के स्थितिबंध में अन्तःकोडाकोड़ी सागर प्रमाण से न्यूनाधिकता नहीं होने पर जिज्ञासु प्रश्न पूछता है कि यदि न्यूनाधिकता नहीं है तो आगे स्थितिबंध के अल्पबहुत्व में जो यह कहा गया कि विरति के उत्कृष्ट स्थितिबंध से देशविरति का जघन्य स्थितिबंध संख्यात गुणा, उससे अविरत सम्यग्दृष्टि अपर्याप्त का जघन्य, उत्कृष्ट स्थितिबंध संख्यात गुणा होता है, कैसे माना जायेगा ? इसका उत्तर यह है कि जैसे नौ समय से लेकर समयन्यून मुहूर्त तक अन्तमुहूर्त के असंख्यात भेद होते हैं वैसे ही साधु के उत्कृष्ट स्थितिबंध से लेकर समयाधिक पर्याप्त संज्ञी पंचेन्द्रिय के उत्कृष्ट स्थितिबंध तक असंख्यात के स्थितिबंध भेद होते हैं जो अन्तःकोड़ाकोड़ी प्रमाण हैं । अतः संख्यातगुणे मानने पर किसी प्रकार का विरोध नहीं है।
इस प्रकार से गुणस्थानों में स्थितिबंध का निरूपण करके अब आगे की गाथाओं में एकेन्द्रिय आदि जीवों की अपेक्षा से स्थितिबन्ध का अल्पबहुत्व बतलाते हैं।
जइलहुबंधो बायर पज्ज असंखगुण सुहमपज्जहिगो। एसिं अपज्जाण लहू सुहमेअरअपजपज्ज गुरू ॥४६॥ लहु बिय पज्जअपज्जे अपजेयर बिय गुरू हिगो एवं । ति चउ असन्निसु नवरं संखगुणो बियअमणपज्जे ॥५०॥ तो जइजिट्ठो बंधो संखगुणो देसविरय हस्सियरो। सम्मचउ सन्निचउरो ठिइबंधाणुकम संखगुणा ॥५१॥
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