Book Title: Karmagrantha Part 5 Shatak
Author(s): Devendrasuri, Shreechand Surana, Devkumar Jain Shastri
Publisher: Marudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur
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पंचम कर्मग्रन्थ
तीस-तीस कोड़ाकोड़ी सागरोपम, इयरचउसु-शेष चार कर्मों की, उदही--सागरोपम, निरयसुराउमिनारक और देवों की आयु, तित्तीसा--तेतीस सागरोपम ।
मुत्तं -- छोड़कर, अकसाय-अकषायी को, ठिई-स्थिति, बार मुहुत्ता-बारह मुहूर्त, जहन्न-जघन्य, वेयणिए-वेदनीय कर्म की, अट्टट्ठ-आठ-आठ मुहूर्त, नामगोएसु-नाम और गोत्र कर्म की, सेसएमु-शेष पांच कर्मों की, मुहुत्तंतो--अन्तर्मुहूर्त ।
गाथार्थ-नाम और गोत्र कर्म की उत्कृष्ट स्थिति बीस कोडाकोड़ी सागरोपम होती है। मोहनीय कर्म की सत्तर कोडाकोड़ी सागरोपम, बाकी के चार कर्मों की तीस कोड़ाकोडी सागरोपम तथा नारक और देवों की आयु तेतीस सागरोपम है ।
अकषायी को छोड़कर (सकषायी की) वेदनीय कर्म की जघन्य स्थिति बारह मुहूर्त है । नाम और गोत्र कर्म की आठआठ मुहूर्त तथा शेष पांच कर्मों की जघन्य स्थिति अन्तमुहूर्त प्रमाण होती है।
विशेषार्थ-इन दोनों गाथाओं में आठ मूल कर्मों की उत्कृष्ट और जघन्य स्थिति बतलाई है । नामक्रम से कर्मों की स्थिति न बतलाकर एक जैसी स्थिति वाले कर्मों को एक साथ लेकर उनकी स्थिति का प्रमाण कहा है। जैसे कि नाम और गोत्र कर्म की स्थिति बराबर है तो उनको एक साथ लेकर कहा है कि 'वीसयरकोडिकोडी नामे गोए' नाम और गोत्र कर्म की उत्कृष्ट स्थिति बीस कोडाकोड़ी सागरोपम है। 'तीसयर चउसु उदही' चार कर्मों की स्थिति तीस कोडाकोड़ी सागरोपम है । लेकिन इन चार कर्मों के नामों का गाथा में संकेत नहीं है। क्योंकि नाम और गोत्र की स्थिति अलग से बतला दी
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