Book Title: Karmagrantha Part 5 Shatak
Author(s): Devendrasuri, Shreechand Surana, Devkumar Jain Shastri
Publisher: Marudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur
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पंचम कर्मग्रन्थ
ही बन्ध होता है । इसके आगे बादर कषाय का अभाव हो जाने से संज्वलन लोभ प्रकृति का भी बंध नहीं होता है । इस प्रकार मोहनीय कर्म के दस बन्धस्थान जानना चाहिये । इन दस बंधस्थानों में नौ भूयस्कार, आठ अल्पतर, दस अवस्थित और दो अवक्तव्य बंध होते हैं । ' जिनका स्पष्टीकरण नीचे किया जाता है। ____मोहनीय कर्म के भूयस्कार आदि बंध-एक को बांध कर दो का बंध करने पर पहला भूयस्कार बंध और दो को बांधकर तीन का बंध करने पर दूसरा भूयस्कार बंध होता है। इसी प्रकार तीन को बांध कर चार का बंध करने पर तीसरा, चार को बांधकर पांच का बन्ध करने पर चौथा,सांच का बंध करके नौ का बंध करने पर पांचवां, नौ का बंध करके तेरह का बन्ध करने पर छठा, तेरह का बंध करके सत्रह का बंध करने पर सातवां, सत्रह का बन्ध करके इक्कीस का बन्ध करने पर आठवां और इक्कीस का बन्ध करके बाईस का बन्ध करने पर नौवां भूयस्कार बन्ध होता है।
आठ अल्पतर बंध इस प्रकार हैं-बाईस का बंध करके सत्रह
१ गो० कर्मकांड में मोहनीय कर्म के भुजाकारादि बंधों में कुछ अन्तर है, उसमें
अधिक माने गये हैं, जिनका विवरण परिशिष्ट में दिया गया है। २ मोहनीय कर्म के आठ अल्पत र बन्ध होते हैं। बाईस का बन्ध करके
इक्कीस का बन्ध रूप अल्पतर बन्ध नहीं बताने का कारण यह है कि बाईस का वन्ध पहले गुणस्थान में होता है और इक्कीस का बन्ध दूसरे गुणस्थान में । लेकिन पहले गुणस्थान से जीव दूसरे गुणस्थान में नहीं जाता है। दूसरा गुणस्थान अवक्रान्ति की अपेक्षा से है, उत्क्रान्ति की अपेक्षा से नहीं । यदि जीव पहले गुणस्थान से दूसरे गुणस्थान में जा सकता तो इक्कीस का अल्पतर बन्ध बन सकता था। लेकिन मिथ्यादृष्टि सासा
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