Book Title: Karmagrantha Part 5 Shatak
Author(s): Devendrasuri, Shreechand Surana, Devkumar Jain Shastri
Publisher: Marudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur
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शतक
होता रहता है। गाथाओं में घाती और अघाती के रूप में प्रकृतियों के नाम बतलाने के साथ-साथ विशेष रूप से घाति कर्म प्रकृतियों के देशघाती और सर्वघाती यह दो उपभेद और बतलाये हैं। जिससे दो बातें स्पष्ट हो जाती हैं कि समस्त घाती कर्म प्रकृतियां कितनी और कौन-कौन सी हैं तथा उनमें से अमुक प्रकृतियां सर्वघातिनी और अमुक प्रकृतियां देशघातिनी हैं। उनके नाम इस प्रकार हैं___ 'केवलजुयलावरणा पणनिद्दा बारसाइमकसाया मिच्छं ति सव्वघाई' इस गाथांश में सर्वघातिनी प्रकृतियों के नाम व संख्या का निर्देश किया गया है कि
(१) ज्ञानावरण केवलज्ञानावरण ।
(२) दर्शनावरण-केवलदर्शनावरण, पांच निद्रायें-निद्रा, निद्रानिद्रा, प्रचला, प्रचला-प्रचला, स्त्यानद्धि ।
(३) मोहनीय-अनंतानुबन्धी क्रोध, मान, माया, लोभ, अप्रत्याख्यानावरण क्रोध, मान, माया लोभ, प्रत्याख्यानावरण क्रोध, मान, माया, लोभ और मिथ्यात्व ।' ___कुल मिलाकर ये २० हैं । इनमें ज्ञानावरण की १, दर्शनावरण की ६
और मोहनीय की १३ प्रकृतियों का ग्रहण किया गया है जो जीव के मूल गुणों को सर्वांश में घात करने से सर्वघातिनी कहलाती हैं । जिसका स्पष्टीकरण इस प्रकार है-केवलज्ञानावरण आत्मा के केवलज्ञान गुण को आवृत करता है । जब तक केवलज्ञानावरण दूर न हो तब तक केवलज्ञान उत्पन्न नहीं होता है । इसीलिये केवलज्ञानावरण को सर्वघाती कहा जाता है । लेकिन यह ध्यान में रखना चाहिये कि
१. केवलिय नाण दंसण आवरण बारसाइमकसाया ।
मिच्छत्तं नि हाओ इय बीसं सबधाईओ ॥
-- पंचसंग्रह ३।१७
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