Book Title: Karmagrantha Part 5 Shatak
Author(s): Devendrasuri, Shreechand Surana, Devkumar Jain Shastri
Publisher: Marudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur
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६८
शतक
का बंध होने से ग्यारहवां भूयस्कार, अपूर्वकरण के प्रथम भाग में छप्पन को जिन नामकर्म रहित तथा निद्रा और प्रचला सहित बांधने से सत्तावन के बंध में बारहवां भूयस्कार तथा जिननाम सहित अट्ठावन का बंध होने पर तेरहवां भूयस्कार, अप्रमत्त गुणस्थान में उक्त अट्ठावन को देवायु सहित उनसठ का बंध करने पर चौदहवां भूयस्कार, देशविरति गुणस्थान में देवप्रायोग्य अट्ठाईस प्रकृतियों का बंध करने के साथ ज्ञानावरण पांच, दर्शनावरण छह, वेदनीय एक, मोहनीय तेरह, देवायु एक, नामकर्म की अट्ठाईस प्रकृतियां, गोत्र की एक और अंतराय की पांच, इस प्रकार साठ प्रकृतियों के बांधने से पन्द्रहवां भूयस्कार इन साठ के साथ तीर्थंकर नाम का भी बंध करने से इकसठ के बंध का सोलहवां भूयस्कार, (यहां किसी भी तरह एक जीव को. एक समय में बासठ प्रकृतियों का बंध संभव नहीं, अतः उसका भूयस्कार भी नहीं कहा है।) चौथे गुणस्थान में आयु के अबन्धकाल में देवप्रायोग्य नामकर्म की अट्ठाईस प्रकृतियों को बांधने पर ज्ञानावरण की पांच, दर्शनावरण की छह, वेदनीय की एक, मोहनीय की सत्रह, गोत्र की एक, नामकर्म की अट्ठाईस और अंतराय की पाँच इन तिरेसठ प्रकृतियों का बंध करने से सत्रहवाँ भूयस्कार देवायु के बंध के साथ चौसठ प्रकृतियों को बांधने से अठाहरवां भूयस्कार/ जिन नामकर्म सहित पैंसठ को बाँधने पर उन्नीसवाँ भूयस्कार, चौथे गुणस्थान में देव हो और उसके द्वारा मनुष्यप्रायोग्य तीस प्रकृतियों के बांधने पर छियासठ के बंध में बीसवां भूयस्कार, मिथ्यात्व गुणस्थान में ज्ञानावरण की पांच, दर्शनावरण की नौ, वेदनीय की एक, मोहनीय की बाईस, आयु की एक, नाम की तेईस, गोत्र की एक और अंतराय. की पांच, इन सड़सठ प्रकृतियों का बंध करने पर इक्कीसवां भयस्कार, इनमें नामकर्म की पच्चीस और आयु रहित अड़सठ के बांधने पर
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