Book Title: Karmagrantha Part 5 Shatak
Author(s): Devendrasuri, Shreechand Surana, Devkumar Jain Shastri
Publisher: Marudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur
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शतक
को भी देशघाती मानने का कारण यह है कि वीर्यान्तराय का उदय होते हुए भी सूक्ष्म निगोदिया जीव के इतना क्षयोपशम अवश्य रहता है जिससे आहार परिणमन, कर्म-नोकर्म वर्गणाओं का ग्रहण, गत्यन्तर गमन रूप वीर्यलब्धि होती है। वीर्यान्तराय कर्म के क्षयोपशम की तरतमता के कारण ही सूक्ष्म निगोदिया से लेकर बारहवें गुणस्थान तक के जीवों के वीर्य (शक्ति, सामर्थ्य) की हीनाधिकता पाई जाती है। यह सब केवली के वीर्य का एकदेश है । यदि वीर्यान्तराय कर्म सर्वघाती होता तो जीव के समस्त वीर्य को आवृत करके उसे जड़वत् निश्चेष्ट कर देता । इसीलिये वीर्यान्तराय कर्म देशघाती है। .. ___यहाँ सर्वघाती की २० और देशघाती की २५ प्रकृतियाँ बतलाई हैं जो कुल मिलाकर ४५ हैं, सो बंध की अपेक्षा से समझना चाहिये । जब उदय की अपेक्षा विचार करते हैं तो सम्यक्त्व और मिश्र मोहनीय को मिलाने पर ४७ प्रकृतियां होती हैं । इन दोनों में सम्यक्त्व मोहनीय का देशघाती में और मिश्र मोहनीय का सर्वघाती प्रकृतियों में समावेश होता है। तब सर्वघाती २१ और देशघाती २६.प्रकृतियां हैं। १ गोल कर्मकांड में बंध व उदय की अपेक्षा सर्वघाती और देशघाती प्रकृतियों को गिनाया है
केवलणाणावरणं दसणछक्कं कसायबारसयं । मिच्छ च सव्वघादी सम्मामिच्छं अबंधम्हि ।।३।।
केवलज्ञानावरण, छह दर्शनावरण (केवलदर्शनावरण, पांचनिद्रा) बारह कषाय (अनन्तानुबंधी, अप्रत्याख्यानावरण, प्रत्याख्यानावरण क्रोध मान, माया, लोभ) मिथ्यात्व मोहनीय ये २० प्रकृतियां सर्वघाती हैं। सम्यग मिथ्यात्व प्रकृति भी उदय व सत्ता अवस्था में सर्वघाती है। परंतु यह सर्वघाती जुदी ही जांति की है।
णाणावरणच उक्कं तिदंसणं मम्मगं न संजलणं ।
णव णोकसाय विग्घं छब्बीसा देसघादीओ ।।४०।। ज्ञानावरण चतुष्क, दर्शतावरणत्रिक, सम्यक्त्त, संज्वलन क्रोधादि चार, नौ नो कषाय, पांच अंतराय ये छब्बीस भेद देशघाती हैं।
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