Book Title: Karmagrantha Part 5 Shatak
Author(s): Devendrasuri, Shreechand Surana, Devkumar Jain Shastri
Publisher: Marudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur
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पता कर्मग्रन्थ
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एक सौ बीस हैं। इस गाथा में सिर्फ मूल प्रकृतियों में बंधस्थान बतलाये हैं। _____सामान्य तौर पर प्रत्येक जीव आयुकर्म के सिवाय शेष सात कर्मों का प्रत्येक समय बंध करते हैं। क्योंकि आयुकर्म का बंध प्रतिसमय न होकर नियत समय पर होता है । अतः आयु कर्म के बंध के नियत समय के अलावा सात कर्मों का बंध होता ही रहता है। जब कोई जीव आयुकर्म का भी बंध करता है तब उसके आठ कर्मों का बंध होता है । इस प्रकार से सात और आठ दो बंधस्थानों को समझना चाहिये।
दसवें गुणस्थान में पहुँचने पर आयु और मोहनीय कर्मों के सिवाय शेष छह कर्मों का ही बंध होता है। क्योंकि आयुकर्म का बंध सातवें गुणस्थान तक ही होता है और मोहनीय का बंध नौवें गुणस्थान तक ही । दसवें गुणस्थान से आगे ग्यारहवें, बारहवें और तेरहवें गुणस्थान में सिर्फ एक साता वेदनीय का बंध होता है । शेष कर्मों के बंध का निरोध दसवें गुणस्थान में हो जाता है। यह छह और एक कमबंध के स्थान के बारे में स्पष्टीकरण किया गया है ।
उक्त कथन का सारांश यह है कि मूल कर्म प्रकृतियों के चार बंधस्थान हैं- आठ प्रकृति का, सात प्रकृति का, छह प्रकृति का, एक प्रकृति
जा अपमत्तो सत्तट्ठबंधगा सुहुम छण्हमेगस्स। उवसंतखीणजोगी सत्तण्हं नियट्टी मीस अनियट्टी। --पंच संग्रह २०६ - अप्रमत्त गुणस्थान तक सात या आठ कर्मों का बन्ध होता है । सूक्ष्मसंपराय गुणस्थान में छह कर्मों का और उपशान्त मोह, क्षीणमोह एवं सयोगि केवली गुणस्थान में एक वेदनीय कर्म का बंध होता है। निवृत्तिकरण, मिश्र और अनिवृत्तिकरण गुणस्थान में आयु के बिना सात कर्मों का ही बंध होता है ।
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