Book Title: Karmagrantha Part 5 Shatak
Author(s): Devendrasuri, Shreechand Surana, Devkumar Jain Shastri
Publisher: Marudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur
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शतक
पर सम्यक्त्व की उत्पत्ति असंभव ही है, वह सम्यक्त्व गुण का सर्वात्माना घात करती है, इसीलिये उसे सर्वघाती में ग्रहण किया है।।
सर्वघातिनी प्रकृतियों का कथन करने के बाद अब देशघातिनी प्रकृतियों के नाम बतलाते हैं-'चउणाणतिदसणावरणा संजलण नोकसाया विग्धं इय देसघाइयं'–चार ज्ञानावरण, तीन दर्शनावरण, संज्वलन कषाय चतुष्क, नौ नो कषाय और पांच अन्तराय कर्म यह देशघाति प्रकृतियां हैं । जिनके नाम क्रमशः इस प्रकार हैं
(१) ज्ञानावरण - मति, श्रु त, अवधि, मनपर्याय ज्ञानावरण । (२) दर्शनावरण चक्षु, अचक्षु, अवधि दर्शनावरण ।
(३) मोहनीय -- संज्वलन क्रोध, मान, माया, लोभ, हास्य, रति, अरति, शोक, भय, जुगुप्सा, स्त्री-पुरुष-नपुसक वेद ।
(४) अंतराय-दान, लाभ, भोग, उपभोग, वीर्य अन्तराय ।'
इनमें ज्ञानावरण की ४, दर्शनावरण की ३, मोहनीय की १३ और अन्तरायकर्म की ५ प्रकृतियां हैं। जो कुल मिलाकर २५ होती हैं। ये प्रकृतियां आत्मा के गुणों का एकदेश घात करने से देशघातिनी कहलाती हैं। इनको देशघाती मानने के कारण को स्पष्ट करते हैं कि मतिज्ञानावरण आदि चारों ज्ञानावरण केबलज्ञानावरण द्वारा आच्छादित नहीं हुए ऐसे ज्ञानांश का आवरण करते हैं । यदि कोई छद्मस्थ जीव मत्यादि ज्ञानचतुष्क के विषयभूत अर्थ को न जाने तो वही मतिज्ञानादि के आवरण का उदय समझना चाहिए । किन्तु मति आदि चारों ज्ञान के अविषयभूत (केवलज्ञान के
नाणावरण चउक्क दंसणतिग नोकसाय विग्घपणं । संजलण देसघाइ, तइयविगप्पो इमो अन्नो ।।
___ -पंचसंग्रह ३११६
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