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कहा कलापूर्णसूरि ने
(पूज्यश्री का गृहस्थ-जीवन, पूज्यश्री के ही मुंह से)
जा अवतरण : पं. मुक्तिचन्द्रविजय अ
गणि मुनिचन्द्रविजय वि.सं. २०४१, नागोर (राज.) में वै.सु. २ के दिन पर हम सब ने मिल कर पूज्यश्री को कहा : हितशिक्षा हमने बहुत बार सुनी । आज आपके ६२ वे जन्म-दिन पर हमें आपके अज्ञात गृहस्थ-जीवन के बारे में जानना है। आप कृपा करो ।
प्रथम बार तो पूज्यश्री ने मना कर दी: अपने बारे में कुछ भी कहना अच्छा नहीं ।
लेकिन हम सब के बहुत आग्रह से दाक्षिण्य गुण के स्वामी पूज्यश्री ने अपने गृहस्थ जीवन के बारे में कहा और हमने एक नोट में उसका अवतरण भी किया जाता ____उस नोट के आधार पर वि.सं. २०४४ में समाज-ध्वनि विशेषांक में हमने पूज्यश्री का जीवन-चरित्र भी लिखा, जो कहे कलापूर्णसूरि-४ पुस्तक (गुजराती) के अंत में पुनः प्रकाशित भी हो चुका है।
इस वर्ष (वि.सं. २०५८) पूज्यश्री का स्वर्गगमन होने के बाद हमको वह नोट याद आई, लेकिन भूकंप में अनेक गांवों के साथ हमारा मनफरा गांव भी संपूर्ण ध्वस्त हुआ था, हमारी वह नोट भी उधर कहीं गुम होने की शंका की वजह से मिलने के संभावना नहीं थी। परंतु अभी (वै.व. १४, २०५८) गागोदर में उस आत्मकथा का अवतरण छबील ने अपनी नोट में किया था। (वि.सं. २०४२ में हमारा चातुर्मास गागोदर था तब) वह अवतरण मिलने पर हम आनंद से झुम उठे । स्व. पूज्य आचार्यश्री की भाषा में कहें तो प्रभु ने हमारा मनोरथ पूर्ण कर दिया ।
उस गुजराती अवतरण का हिन्दी अनुवाद यहां पर प्रस्तुत है । याद रहे कि अपने जीवन के बारे में पूर्ण रूप से पूज्यश्री ने एक वक्त ही कहा है।
आशा है: इससे पाठक गण को प्रेरणा मिलेगी कि श्रावक का जीवन कैसा होना चाहिए?
- संपादक