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नव तत्त्व ।
(१७)
अनेक लब्धिये भी प्राप्त होती है। ऐसा समझ कर तपस्या करने का विचार करे।
५० लोक भावनाः-चौदह राज प्रमाणे जो लोक है उसका विचार करे।
५१ बोध भावनाः-राज्य देव, पदवी, ऋद्धि कल्प दृमादि ये सचे सुलभ हैं, अनंती वार मिले पर बोध वीज समकित का मिलना दुर्लभ है ऐसा सोचे।
५२ धर्म भावना:- सर्वज्ञ ने जो धर्म प्ररुपा है वह संसार समुद्र से पार उतारने वाला है। पृथ्वी निरावलम्ब निराधार है । चन्द्रमा और सूर्य समय पर उदय होते हैं। मेघ समय पर वृष्टि करते हैं। इस प्रकार जगत में जो अच्छा होता है, वह सब सत्य धर्म के प्रभाव से, ऐसा विचार करे। पंच चारित्र ५३ सामायिक चरित्र ५४ छेदोपस्थानिक चारित्र ५५ परिहार विशुद्ध चारित्र ५६ सूक्ष्म संपराय चारित्र ५७ यथाख्यात चारित्र इस प्रकार ५७ भेद संवर के जान कर आचरण करने से निराबाध (पीड़ा रहित ) परम सुख की प्राप्ति होगी।
. ॥ इति संवर तत्व ॥
(७) निर्जरा तत्त्व के लक्षण तथा भेदः
बारह प्रकार की तपस्या द्वारा कर्मों का जो क्षय होता है उसे निर्जरा तत्व कहते हैं।
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