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( १६ )
थोकडा संग्रह |
कर पुत्र हो जाता है, पुत्र पिता हो जाता है, मित्र शत्रु होजाता है, शत्रु मित्र हो जाता है इत्यादिक अनेक प्रकार से जीव नई नई अवस्था को धारण करता है ऐसा विचार करे ।
४४ एकत्व भावना :- जीव परलोक से अकेला श्राया व अकेला ही जायगा । अच्छे बुरे कर्म को अकेला ही भोगेगा जिनके लिये पाप कर्म किये वे भोंगते समय कोई साथ नहीं देगें इस प्रकार सोचे ।
४५ अन्यत्व भावना:-- इस जीव से शरीर पुत्र कलत्रादि धन धान्य, द्विपद चतुष्पद आदि सर्व परिग्रह अन्य है ये मेरे नहीं, व मैं इनका नहीं ऐसा सोचे ।
४६ अशुचि भावनाः- यह शरीर सात धातुमय है व जिसमें से मल मूत्र श्लेष्मदिक सदैव निकलता है स्नान आदि से शुद्ध बनता नहीं, ऐसा विचार करे।
४७ श्रव भावना:- ये संसारी जीव मिथ्यात्व व्रत कषाय प्रमादादि आश्रव द्वारा निरन्तर नये नये कर्म बांव रहे हैं, ऐसा सोचे ।
४८ संवर भावन :--व्रत, संवर, साधु के पंच महाव्रत, श्रावक के बारह व्रत, सामायिक पौषधोपवास यादि करने से जीव नये कर्म बांधता नहीं, किंवा पूर्व कर्मों को पतले करता है । ऐसा करने के लिये विचार करे ।
४६ निर्जरा भावना:- चार प्रकार की तपस्या करने से निविड़ कर्म टूट कर दीर्घ संसार पार होता है व
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