Book Title: Jain evam Bauddh Shiksha Darshan Ek Tulnatmak Adhyayana
Author(s): Vijay Kumar
Publisher: Parshwanath Shodhpith Varanasi
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जैन एवं बौद्ध शिक्षा-दर्शन : एक तुलनात्मक अध्ययन -- उपर्युक्त प्रश्नों को देखकर ही कुछ एक विद्वानों का आरोप है कि भारतीय दर्शन मानव-जीवन में निराशा का संचार करता है, किन्तु ऐसी बात अधिकांशत: वे ही व्यक्ति करते हैं जो भारतीय दर्शन से अपरिचित होते हैं। भारतीय दर्शन दुःख से निवृत्ति की बात करता है न कि प्रवृत्ति की। दुःख से निवृत्ति का सिद्धान्त देकर जीवन में आशावादिता का संचार करता है।
जीवन और दर्शन एक-दूसरे से अभिन्न हैं। अत: कहा जा सकता है कि आदिकाल में जीवन और दर्शन में कोई अन्तर नहीं था और न आज है तथा न भविष्य में रहेगा। शिक्षा और दर्शन
जीवन को समुन्नत बनाने के लिए शिक्षा और दर्शन दोनों की आवश्यकता पड़ती है। समाज और व्यक्ति की उन्नति तब होती है जब सिद्धान्त व्यवहार में उतरता है। लेकिन समस्या उठ खड़ी होती है कि सिद्धान्त को व्यवहार में कैसे उतारा जाये? यह काम शिक्षा के द्वारा होता है। शिक्षा दार्शनिक सिद्धान्तों को व्यावहारिक रूप प्रदान करती है, किन्तु ऐसा नहीं है कि इनका सम्बन्ध एकपक्षीय है। कोई भी सम्बन्ध तब तक ही बरकरार रहता है जब तक दोनों पक्ष मजबूत होते हैं। वे सम्बन्ध जिसमें एक देता है और दूसरा लेता है, ज्यादा दिन तक बरकरार नहीं रहते। दर्शन में मानव जीवन के अन्तिम उद्देश्यों तथा उसकी प्राप्ति के उपायों पर विचार किया जाता है और शिक्षा व्यक्ति के आचार-विचारों में परिवर्तन करती है तथा नये ज्ञान की खोज करने के लिए अवलोकन, परीक्षण, चिन्तन और मनन आदि शक्तियों का विकास करती है। फलत: ज्ञान और कौशल के आधार पर दर्शन का पुनर्निर्माण होता है। इस प्रकार नयी शिक्षा नये दर्शन को जन्म देती है और नया दर्शन नयी शिक्षा को जन्म देता है। दोनों एकदूसरे से प्रभावित हैं। शिक्षा का दर्शन पर प्रभाव है तो दर्शन का शिक्षा पर, यथादर्शन में सृष्टि-स्रष्टा, आत्मा-परमात्मा, जीव-जगत, जन्म-मृत्यु आदि की व्याख्या होती है और उस व्याख्या के आधार पर मानव-जीवन के उद्देश्यों को निश्चित किया जाता है तथा शिक्षा उन उद्देश्यों की प्राप्ति में सहायिका होती है। इतना ही नहीं शिक्षा हमारे पूर्वजों द्वारा प्रतिपादित सिद्धान्तों को सुरक्षित रखती है। शिक्षा के अभाव में दार्शनिक सिद्धान्तों का ज्ञान प्राप्त नहीं किया जा सकता है। अत: शिक्षा और दर्शन में अन्योन्याश्रित सम्बन्ध है। दूसरे शब्दों में कहा जा सकता है कि दर्शन और शिक्षा एक ही सिक्के के दो पहलू हैं। एक में दूसरा निहित है। दर्शन जीवन का विचारात्मक पक्ष है तो शिक्षा क्रियात्मक पक्षा
फिक्ते ने अपनी पुस्तक 'एड्रेसेज टू दि जर्मन नेशन' में शिक्षा तथा दर्शन के
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