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में लोगों के साथ मालवई ।
दीक्षा लेने के पश्चात् पञ्जाबी श्रावकों के साथ पञ्जाबी भाषा में बातचीत करते होंगे जिस में कुछ झलक -लहन्दी की पड़ती होगी । अन्य देश वासियों के साथ मिश्रित हिंदी में बात चीत करते होंगे, जिस में उन्हों ने जैनतस्वादर्श की रचना की ।
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लहन्दी और पंजाबी की कुछ विशेषताएं *
(१) वर्गीय चतुर्थ अक्षरों का लहन्दी उच्चारण हिंदी उच्चारण से कुछ ही भिन्न है, अर्थात् लहन्दी में इन के उच्चारण में हिन्दी की अपेक्षा महाप्राणता की कुछ थोडी है । परन्तु पंजावी में महाप्राणता का और साथ ही घोषता का सर्वथा अभाव है । शब्द के आदि में आने वाले चतुर्थ अक्षर के स्थान में प्रथम अक्षर ( अघोष, अल्पप्राण ) बोल कर आगे आने वाला स्वर पांच छः श्रुतियें नीचे सुर में बोला जाता है । शब्द के मध्य या अन्त में केवल महाप्राणता का लोप होता है, घोषता बनी रहती है ।
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(२) संस्कृत प्राकृत के संयुक्त अक्षर के पूर्ववर्ती हस्व स्वर हिंदी में दीर्घ हो जाता है, परन्तु लहन्दी और पंजाबी में ह्रस्व ही रहता है । जैसे
* विशेष वर्णन के लिये देखिये लिंखिस्ट्रिक सर्वे की पूर्वोक्त पुस्तके |