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जैन साहित्य का बृहद् इतिहास
उपलब्ध नियुक्तियों के कर्ता आचार्य भद्रबाहु (द्वितीय) ने निम्नोक्त आगमग्रन्थों पर नियुक्तियाँ लिखी हैं : १. आवश्यक, २. दशवैकालिक, ३. उत्तराध्ययन, ४. आचारांग, ५. सूत्रकृताङ्ग, ६. दशाश्रुतस्कन्ध, ७. बृहत्कल्प, ८. व्यवहार, ९. सूर्यप्रज्ञप्ति, १०. ऋषिभाषित । इन दस नियुक्तियों में से सूर्यप्रज्ञप्ति और ऋषिभाषित की नियुक्तियाँ अनुपलब्ध हैं । ओघनियुक्ति, पिंड नियुक्ति, पंचकल्पनियुक्ति और निशीथनियुक्ति क्रमशः आवश्यक नियुक्ति, दशवैकालिक -- नियुक्ति, बृहत्कल्प नियुक्ति और आचारांगनियुक्ति की पूरक हैं । संसक्तनियुक्ति. बहुत बाद की किसी को रचना है । गोविन्दाचार्य रचित एक अन्य नियुक्तिः ( गोविन्द नियुक्ति ) अनुपलब्ध है ।
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निर्युक्तियों की व्याख्यान - शैली निक्षेप-पद्धति के रूप में प्रसिद्ध है । यह व्याख्या-पद्धति बहुत प्राचीन है । इसका अनुयोगद्वार आदि में दर्शन होता है । इस पद्धति में किसी एक पद के संभावित अनेक अर्थ करने के बाद उनमें से अप्रस्तुत अर्थों का निषेध करके प्रस्तुत अर्थ ग्रहण किया जाता है । जैन न्यायशास्त्र में इस पद्धति का बहुत महत्त्व है । नियुक्तिकार भद्रबाहु ने नियुक्ति का प्रयोजन बताते हुए इसी पद्धति को नियुक्ति के लिए उपयुक्त बताया है । दूसरे शब्दों में निक्षेप-पद्धति के आधार पर किये जानेवाले शब्दार्थ के निर्णय- - निश्चय का नाम ही नियुक्ति है : भद्रबाहु ने आवश्यक- नियुक्ति ( गा, ८८ ) में स्पष्ट कहा है कि एक शब्द के अनेक अर्थ होते हैं किन्तु कौन-सा अर्थ किस प्रसङ्ग के लिए उपयुक्त होता है, भगवान् महावीर के उपदेश के समय कौन-सा अर्थ किस शब्द से सम्बद्ध रहा है, आदि बातों को दृष्टि में रखते हुए सम्यक् रूप से अर्थ - निर्णय करना और उस अर्थ का मूल सूत्र के शब्दों के साथ सम्बन्ध स्थापित करना — यही नियुक्ति का प्रयोजन है ।
आचार्य भद्रबाहुकृत दस नियुक्तियों का रचना क्रम वही है जिस क्रम से ऊपर दस ग्रन्थों के नाम दिये गये हैं । आचार्य ने अपनी सर्व प्रथम कृति आवश्यक - नियुक्ति (गा. ८५ - ६ ) में नियुक्ति - रचना का संकल्प करते समय इसी क्रम से ग्रन्थों की नामावली दी है । नियुक्तियों में उल्लिखित एक-दूसरी नियुक्ति के नाम आदि के अध्ययन से भी यही तथ्य प्रतिपादित होता है । नियुक्तिकार भद्रबाहु
नियुक्तिकार आचार्य भद्रबाहु छेदसूत्रकार चतुर्दश- पूर्वघर आर्य भद्रबाहु से भिन्न हैं । नियुक्तिकार भद्रबाहु ने अपनी दशाश्रुतस्कन्धनियुक्ति एवं पंचकल्पनियुक्ति के प्रारम्भ में छेदसूत्रकार भद्रबाहु को नमस्कार किया है । नियुक्तिकार भद्रबाहु प्रसिद्ध ज्योतिर्विद् वराहमिहिर के सहोदर माने जाते हैं । ये अष्टांग
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