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जैन पारिभाषिक शब्दकोश
पद्धति, जिसके द्वारा अध्ययन के प्रतिपाद्य की व्याख्या की जाती है। अध्ययनार्थकथनविधिरनुयोगः। (अनु ७५ हात पृ २६) (द्र उद्देश)
वस्त्रों को एक साथ झटकना। 'अणेगरूवधुणे'त्ति अनेकरूपा चासौ संख्यात्रयातिक्रमणतो युगपदनेकवस्त्रग्रहणतो वा धूनना च प्रकम्पनात्मिका अनेकरूपधूनना।
(उ २६.२७ शावृ प ५४२) अनेकसिद्ध वे सिद्ध, जो एक समय में एक साथ एक से अधिक, उत्कृष्ट एक सौ आठ मुक्त होते हैं। उक्कोसोगाहणाए य सिझंते जुगवं दुवे। चत्तारि जहन्नाए जवमज्झत्तरं सयं॥ (उ ३६.५३) अणेगसिद्ध त्ति एकम्मि समए अणेगे सिद्धा।
(नन्दी ३१ चू पृ २७)
अनुयोगद्वार १. उत्कालिक श्रुत का एक प्रकार, जिसमें पूर्व के अध्ययन की पद्धति का निर्देश है।
(नन्दी ७७) २. वह व्याख्यापद्धति जिसके चार द्वार हैं-उपक्रम, निक्षेप, अनुगम, नय। .....चत्तारि अणुओगदारा भवंति, तं जहा-उवक्कमे, निक्खेवे, अणुगमे, नए।
(अनु ७५) अनुवीचिभाषण सत्य महाव्रत की एक भावना । समीक्षापूर्वक बोलना, बोलने का अवसर हो, तब बोलना। अनुवीचीति देशीवचनमालोचनार्थे वर्तते। भाषणं वचनस्य प्रवर्तनम्। अतोऽयमर्थः-समीक्ष्यालोच्य वचनं प्रवर्तितव्यम्।
(तभा ७.३ वृ) समिक्खितं संजतेण कालम्मि य वत्तव्वं । एवं अणुवीइ समितिजोगेण भावितो भवति अंतरप्पा। (प्रश्न ७.१७)
अनुवीचिसमितियोग
(प्रश्न ७.१७) (द्र अनुवीचिभाषण) अनुशिष्टि यथार्थ का बोध कराने के लिए दी जाने वाली प्रज्ञापना। अनुशिष्टि म सद्भावकथनपुरस्सरं प्रज्ञापना।
(बृभा २८०४ वृ) अनुश्रेणि वह आकाशश्रेणि, जो पूर्व आदि दिशा के अभिमुख होती
अनेकान्त उत्पाद, व्यय और ध्रौव्य में होने वाला भेदाभेदात्मक दृष्टिकोण। एए पुण संगहओ पाडिक्कमलक्खणं वेण्हं पि। तम्हा मिच्छद्दिट्टी पत्तेयं दो वि मूलणया। ण य तइओ अत्थि णओ ण य सम्मत्तं ण तेसु पडिपुण्णं। जेण दुवे एगंता विभज्जमाणा अणेगंतो॥
(सप्र १. १३, १४) अनेवम्भूतवेदना उदीरणा आदि के द्वारा कर्म के वेदन में परिवर्तन करना । इस प्रक्रिया में जैसे कर्म किया, वैसे ही उसका वेदन नहीं होता। 'अणेवंभूयं पि'त्ति यथा बद्धकर्म नैवंभूता अनेवंभूता अतस्तां श्रूयन्ते ह्यागमे कर्मणः स्थितिघातरसघातादय इति।
(भग ५.११७ वृ) अनैकान्तिक हेत्वाभास हेत्वाभास का एक प्रकार। वह हेतु, जो साध्य के अतिरिक्त दूसरे साध्य में भी घटित होता है, जैसे-शब्द अनित्य है क्योंकि वह प्रमेय है। अन्यथाऽप्युपपद्यमानोऽनैकान्तिकः। यथा-अनित्यः शब्दः प्रमेयत्वात्। (भिक्षु ३.१९) अनौपनिधिकी (द्रव्यानुपूर्वी) द्रव्यानुपूर्वी का एक प्रकार। नय के आधार पर द्रव्य के क्रम का विस्तार से बोध कराना।
है।
'अणुसेढि' त्ति अनुकूला-पूर्वादिदिगभिमुखा श्रेणियंत्र । तदनुश्रेणिः
(भग २५.९३ वृ प ८६८) अनेकरूपधूनना प्रतिलेखना का एक दोष। प्रतिलेखना करते समय वस्त्र को अनेक बार-तीन बार से अधिक झटकना अथवा अनेक
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