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जैन पारिभाषिक शब्दकोश
पोग्गलत्थिकाए गरुयलहुए वि, अगरुयलहुए वि ॥
जीवत्थिकाए अगरुयलहुए ।
(भग १.४०३, ४०४)
गुरुलघुपर्यव
पुद्गल का भारात्मक पर्याय, बादर स्कन्ध द्रव्य का पर्याय । (भग २.४५ ) गुरुलघुद्रव्याणि - बादरस्कन्धद्रव्याणि तत्पर्यवाः । ( जंवृ प १३० )
गृद्धपृष्ठमरण
मरण का एक प्रकार। हाथी आदि के कलेवर में प्रविष्ट होने पर दूसरे गृध्र आदि प्राणियों द्वारा नोचे जाने से होने वाला
मरण ।
करिकरभादिशरीरमध्यपातादिना गृध्रादिभिरात्मानं भक्षयतो महासत्त्वस्य भवति । (सम १७.९ वृप ३३ )
गृहपतिरन
चक्रवर्ती के चौदह रत्नों में से एक रत्न, जो चक्रवर्ती के गृह की समुचित व्यवस्था में तत्पर रहता है। गृहपति एक दिन में अन्न निष्पन्न कर खाद्य सामग्री उपस्थित कर देता है । गृहपतिः - चक्रवर्त्तिगृहसमुचितेतिकर्तव्यतापरः ।
(प्रसावृ प ३५० )
गृहान्तरनिषद्या
अनाचार का एक प्रकार । भिक्षा करते समय गृहस्थ के घर में बैठना, जो मुनि के लिए अनाचरणीय है।
गिहं चेव गिहंतरं तंमि गिहे निसेज्जा एत्थ गोचरग्गगतस्स णिसेज्जा... | (द ३.५ जिचू पृ ११४)
गृह मंत्र
अनाचार का एक प्रकार। गृहस्थ के पात्र में भोजन करना, जो मुनि के लिए अनाचरणीय है ।
गहिमत्तं गिहिभायणं ति ।
(द ३.३ जिचू पृ ११२)
गृहिधर्म
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(उपा १.४५)
(द्र श्रावकधर्म)
गृहिलिङ्गसिद्ध
वह सिद्ध, जो गृहस्थ के वेश में मुक्त होता है।
गृहस्थाः सन्तो ये सिद्धास्ते गृहिलिङ्गसिद्धाः ।
१०७
(प्रसावृ प ११२)
गृहिवैयात्य
अनाचार का एक प्रकार। गृहस्थ की सेवा करना - उसको भोजन का संविभाग देना, जो मुनि के लिए अनाचरणीय है। गहीण अण्णापाणादीहिं विसूरंताण विसंविभागकरणं । (द ३.६ जिचू पृ ११४) वेयावडियं नाम तथाऽऽदरकरणं तेसि वा पीतिजणणं, उपकारकं । (दजिचू पृ ३७३ )
गोचरचर्या
भिक्षाचर्या, गाय की भांति गृहस्थ के घरों से थोड़ा-थोड़ा आहार ग्रहण करने की प्रवृत्ति ।
गोश्चरणं गोचरः, चरणं-चर्या, गोचर इव चर्या गोचरचर्या । (आवहावृ २ पृ५७)
गोत्रकर्म
१. वह कर्म, जो जाति, रूप, तप आदि की विशेषता और हीनता के निर्देश का हेतु बनता है । उच्चनीचकुलोत्पत्तिलक्षणः पर्यायविशेषः तद्विपाकवेद्यं कर्मापि गोत्रम् । (प्रज्ञावृ प ४५४) २. वह कर्म, जो समाज में उच्च या नीच स्थान का निर्धारण करता है।
उच्चनीचभेदं गच्छति येनेति गोत्रम् ।
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(जैसिदी ४.३)
गोदोहा
निषद्या का एक प्रकार । घुटनों को ऊंचा रखकर पंजों के बल पर बैठना तथा दोनों हाथों को दोनों सक्थियों (साथलों) पर टिकाना, गाय को दुहने की 'मुद्रा में बैठना ।
गोर्दोहनं गोदोहिका तद्वद्याऽसौ गोदोहिका ।
(स्था ५.५० वृ प २८७)
गोलक
अनन्त जीवों का एक साधारण शरीर निगोद कहलाता है। उसका आकार स्तिबुक (जलबिन्दु) जैसा होता है, ऐसे असंख्य निगोद मिलकर एक गोलक का निर्माण करते हैं। अनन्तानां जीवानां साधारणमेकं शरीरं, तच्च स्तिबुकाकारं, इत्थंभूतानां चासंख्येयानां निगोदानां समुदायो गोलकाकारो
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