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जैन पारिभाषिक शब्दकोश
है-प्राजापत्य स्थावरकाय।
(स्था ५.१९) (द्र इन्द्रस्थावरकाय) प्राजापत्यस्थावरकायाधिपति वह देव, जो वनस्पतिकायसंज्ञक स्थावरकाय का अधिपति
(स्था ५.२० वृ प २७९) (द्र इन्द्रस्थावरकायाधिपति)
प्राज्ञश्रमण ..."अनधीतद्वादशांगचतुर्दशपूर्वा अपि सन्तो यमर्थं चतुर्दशपूर्वी निरूपयति तस्मिन् विचारकृच्छ्रेऽप्यर्थेऽतिनिपुणप्रज्ञाः प्राज्ञश्रमणाः।
(योशा १.८ वृ पृ ४१) (द्र प्रज्ञाश्रवण)
हिंसा की प्रवृत्ति के द्वारा कर्म को आकर्षित करने वाली आत्मा की अवस्था।
(स्था ५.१२८) प्राणातिपातक्रिया वह क्रिया, जिसके द्वारा आयु, इन्द्रिय, बल आदि प्राणों का वियोग होता है। आयुरिन्द्रियबलप्राणानां वियोगकरणात् प्राणातिपातिकी।
(तवा ६.५.८) प्राणातिपात पाप पापकर्म का पहला प्रकार । प्राणी के प्राणवियोजन की प्रवत्ति से होने वाला अशुभ कर्म का बंध। (आवृ प ७२) प्राणातिपात पापस्थान पापस्थान का पहला प्रकार। वह कर्म. जिसके उदय से जीव प्राणातिपात में प्रवृत्त होता है। जिण कर्म नै उदय करी जी, हणै कोई पर प्राण। तिण कर्म नै कहियै सही जी, प्राणातिपात पापठाण॥
(झीच २२.३)
प्राण १. पर्याप्ति के द्वारा पैदा होने वाली जैविक ऊर्जा। जीवनशक्तिः प्राणाः।
(जैसिदी ३.१२) २. दो, तीन और चार इन्द्रिय वाले जीव । (द्र सत्त्व) ३. प्राणशक्ति को गति देने वाले वायु का एक प्रकार। नासाग्र, हृदय, नाभि और पैरों के अंगूठे तक व्याप्त रहने । वाला वायु , जिसका वर्ण नीला होता है। प्राणापान-समानोदान-व्यानाः पञ्च वायवः॥ नासाग्र-हृदय-नाभि-पादांगुष्ठान्तगोचरो नीलवर्णः प्राणः॥
(मनो ५.१,२)
प्राणत दसवां स्वर्ग । कल्पोपपन्न वैमानिक देवों की दसवीं आवास भूमि।
(उ ३६.२११) (देखें चित्र पृ ३४६)
प्राणातिपातविरमण पहला महाव्रत। प्राणातिपात के परित्याग से होने वाली विरति।
(स्था ५.१) (द्र सर्वप्राणातिपातविरमण, स्थूलप्राणातिपातविरमण) प्राणापान पर्याप्ति
(प्रसावृप ३८७) (द्र आनापान पर्याप्ति) प्राणायु पूर्व बारहवां पूर्व, जिसमें आयु आदि प्राणों का भेद सहित प्रज्ञापन किया गया है। बारसमं पाणायुं, तत्थ आयुं-प्राणविधाणं सव्वं सभेदं अण्णे य प्राणा वण्णिता। (नन्दी १०४ चू पृ७६) प्रातिहारिक मुनि द्वारा गृहीत वह वस्तु, जिसका प्रत्यर्पण किया जा सके, गृहस्थ को वापिस दिया जा सके, जैसे-पीठ, फलक आदि। भुक्तोद्वरितं भूयोऽस्माकं प्रत्यर्पणीयमिति यत् प्रतिज्ञातं तत् प्रातिहारिकम्।
(बृभा ३६५७ वृ)
प्राणसूक्ष्म ऐसा सूक्ष्म जीव, जिसे स्थिर अवस्था में जानना कठिन है
और जो चलता हुआ दिखाई देता है। पाणसुहुमं अणुद्धरी कुंथू जा चलमाणा विभाविज्जइ थिरा दुव्विभावा।
(द ८.१५ जिचू पृ २७८) प्राणातिपात
(स्था १.९५) (द्र वध) प्राणातिपात आश्रव
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