Book Title: Jain Paribhashika Shabdakosha
Author(s): Tulsi Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 328
________________ जैन पारिभाषिक शब्दकोश न चएड नियत्तेउं पायं सहसाकरणमेयं॥ (स्था १०.६९ वृ प ४६०) सब अर्थ सिद्ध होते हैं, इसलिए इसका नाम है सर्वार्थसिद्ध। इस विमान में रहने वाला देव प्रतनु कर्म वाला होता है, इसलिए भूख आदि से पराजित नहीं होता। सर्वेष्वभ्युदयार्थेषु सिद्धा: सर्वार्थश्च सिद्धाः सर्वे चैषामभ्युदयार्थाः सिद्धा इति सर्वार्थसिद्धाः। (तभा ४.२०) (द्र अपराजित) सहस्त्रार आठवां स्वर्ग। कल्पोपन्न वैमानिक देवों की आठवीं आवासभूमि। (उ ३६.२११) (देखें चित्र पृ ३४६) सांव्यवहारिक जीव वह जीव, जो निगोद-वनस्पति की अवस्था से उद्वर्तन कर पृथ्वीकायिक आदि जीव-जाति में जन्म ले चुका है। ये निगोदावस्थात उद्वत्य पृथिवीकायिकादिभेदेष वर्तन्ते ते लोकेषु दृष्टिपथमागताः सन्तः पृथिवीकायिकादिव्यवहारमनुपतन्तीति व्यवहारिका उच्यन्ते। (प्रज्ञावृप ३८०) (द्र असांव्यवहारिक जीव) सर्वावधि वह अवधिज्ञान, जो उत्कृष्ट परमावधि के क्षेत्र से बाहर असंख्यात लोकक्षेत्रों को जानने की क्षमता रखता है। यह अविकल्प है, भवान्तर अनुगामी नहीं है क्योंकि इसके पश्चात् केवलज्ञान उत्पन्न होता है। मणूसाणं "देसोही वि सव्वोही वि॥ (प्रज्ञा ३३.३३) सर्वावधिविकल्पत्वादेक एव।"उत्कृष्टपरमावधिक्षेत्राद् बहिरसंख्यातक्षेत्रः सर्वावधिःस एष न वर्धमानो नहीयमानो नानवस्थितो न प्रतिपाती भवान्तरं प्रत्यननुगामी देशान्तरं प्रत्यनुगामी। (तवा १.२२.४) (द्र देशावधि) सर्वेन्द्रिय समाहित जिसकी सब इन्द्रियां समाहित हों-अंतर्मखी हों. बाह्य विषयों से विरत होकर आत्मलीन बन गई हों। सव्विंदियसमाहितो सव्वेहिं इंदिएहिं एएसिं परिहरणे सम्म आहितो समाहितो। (द ५.१.२६ अचू पृ १०७) सांव्यवहारिक प्रत्यक्ष इन्द्रिय और मन के द्वारा होने वाला प्रत्यक्ष ज्ञान, जो अवग्रह, ईहा, अवाय और धारणारूप होता है। इन्द्रियमनोनिमित्तोऽवग्रहहावायधारणात्मा सांव्यवहारिकम्। (प्रमी १.१.२०) सौषधि लब्धि का एक प्रकार । मल, मूत्र, नख, केश आदि के स्पर्श मात्र से रोगों को दूर करने वाली योगज विभूति। 'सव्वोसहि'त्ति सर्व एव विड्-मूत्र-केश-नखादयोऽवयवाः सुरभयो व्याध्यपनयनसमर्थत्वादौषधयो यस्यासौ सौषधिः । (विभा ७७९ वृ) सांशयिक मिथ्यात्व का एक प्रकार । वह दृष्टिकोण, जिसके द्वारा देव, गुरु और धर्म के प्रति यह सम्यक् है अथवा यह' इस प्रकार का संशय होता है। सांशयिकं देवगुरुधर्मेषु अयमयं वा' इति संशयानस्य भवति। (योशा २.३ वृ पृ १६५) साकार उपयोग ज्ञानोपयोग. विशेष को ग्रहण करने वाला ज्ञान। उत्पादव्यय-ध्रौव्यात्मक द्रव्य के ध्रौव्य को गौणकर उत्पाद और व्यय को ग्रहण करने वाला ज्ञान । उत्पादव्ययध्रौव्यात्मकस्य द्रव्यस्य ध्रौव्यं गौणीकृत्य उत्पादव्यययोग्राहकं ज्ञानं साकार उपयोग इत्युच्यते। (जैसिदी २.५ वृ) सहसाकार वह प्रवृत्ति, जो अकस्मात् की जाती है अथवा हो जाती है; जैसे-बिना देखे पैर रखा हो और फिर उसे उठाने की शक्यता न हो। सहसाकारे-अकस्मात्करणे सति, सहसाकारलक्षणं चेदम्-- पुव्वं अपासिऊणं पाए छूढमि जं पुणो पासे। साकारप्रत्याख्यान प्रत्याख्यान का एक प्रकार।वह प्रत्याख्यान. जिसमें परिस्थिति आदि की छूट रखी गई हो। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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