Book Title: Jain Paribhashika Shabdakosha
Author(s): Tulsi Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 326
________________ जैन पारिभाषिक शब्दकोश सराग सम्यग्दर्शन वह सम्यग् दर्शन, जिसका स्वामी उपशांत और क्षीण मोह वाला नहीं है। दसवें गुणस्थान तक का सम्यग्दर्शन । सरागस्य-: -अनुपशान्तक्षीणमोहस्य यत्सम्यग्दर्शनं तत्त्वार्थश्रद्धानं तत्तथा, अथवा सरागं च तत्सम्यग्दर्शनं चेति विग्रहः सरागं सम्यग्दर्शनमस्येति वेति । (स्था ६.१३ वृ प ४७७ ) (द्र सराग सम्यक्त्व) सर्पिराव रसऋद्धि का एक प्रकार । 1 १. इस लब्धि से सम्पन्न मुनि के हाथ में रखा हुआ रूक्ष आहार भी घृत की भांति स्निग्ध हो जाता है २. इस लब्धि से सम्पन्न मुनि की वाणी श्रोता के लिए घृत के समान स्निग्ध, मधुर और आनंददायी होती है । येषां पाणिपात्रगतमन्नं रूक्षमपि सर्पीरसवीर्यविपाकानाप्नोति, सर्पिरिव वा येषां भाषितानि प्राणिनां सन्तर्पकाणि भवन्ति ते सर्पिरास्त्रविणः । (तवा ३.३६.३) सर्व अदत्तादानविरमण तृतीय महाव्रत । सर्वतः - तीन करण और तीन योग से अदत्तादान (चोरी) का यावज्जीवन परित्याग । अहावरे तच्चे भंते! महव्वए अदिन्नादाणाओ वेरमणं । सव्वं भंते! अदिन्नादाणं पच्चक्खामि नेव सयं अदिन्नं हेज्जा नेवनेहिं अदिन्नं गेण्हावेज्जा अदिन्नं गेण्हंते वि अन्ने न समजा जा जावज्जीवाए तिविहं तिविहेणं मणेणं वायाए काएणं न करेमि न कारवेमि करंतं पि अन्नं न समजाणामि । (द ४ सू १३) सर्वआराधक १. वह व्यक्ति, जो शीलसम्पन्न भी है और श्रुतसम्पन्न भी I ...' से णं पुरिसे सीलवं सुयवं - उवरए, विण्णायधम्मे। एस गोमा ! म पुरिसे सव्वाराहए पण्णत्ते । (भग ८.४५०) २. वह मुनि, जो चतुर्विध धर्मसंघ तथा अन्यतीर्थिक और के अप्रिय व्यवहार को सम्यक् सहन करता है। गृहस्थ जो अम्हं निग्गंथो वा निग्गंथी वा आयरिय-उवज्झायाणं अंति मुंडे भवित्ता अगाराओ अणगारियं पव्वइए समाणे बहूणं समणाणं बहूणं समणीणं बहूणं सावयाणं बहूणं सावियाणं बहूणं अण्णउत्थियाणं बहूणं गिहत्थाणं सम्म Jain Education International सहइ खमइ तितिक्खड़ अहियासेड़ - एस णं मए पुरिसे सव्वआराहए पण्णत्ते । (ज्ञा ११.९) ३०९ सर्वकामविरक्तता योगसंग्रह का एक प्रकार। समस्त विषयों से विमुखता । 'सव्वकामविरत्तय' त्ति समस्तविषयवैमुख्यम् । (सम ३२.१.३ वृ प ५५ ) सर्वघाति घाती कर्म की वह प्रकृति, जो आत्मा के गुणों का पूर्णतया घात करती है, जैसे- केवलज्ञानावरण, केवलदर्शनावरण आदि । स्वविषयं कार्त्स्न्येन घ्नन्ति यास्ताः सर्वघातिन्यः । केवलजुयलावरणा पणनिद्दा बारसाइमकसाया । मिच्छं ति सव्वघाई चउणाणतिदंसणावरणा ॥ संजण नोकसाया विग्धं इय देसघाइय..... | (कप्र पृ ३१ ) (कग्र ५.१३, १४) सर्वतोभद्रा प्रतिमा प्रतिमा का एक प्रकार । पूर्व, दक्षिण, पश्चिम और उत्तर दिशाओं, चारों विदिशाओं तथा ऊर्ध्व और अधः- इन दश दिशाओं में एक-एक अहारोत्र तक कायोत्सर्ग करना और दस दिन उपवास करना । सर्वतोभद्रा तु दशसु दिक्षु प्रत्येकमहोरात्रकायोत्सर्गरूपा अहोरात्रदशकप्रमाणेति । (स्था २.२४६ वृ प ६१ ) (द्र भद्रा प्रतिमा) सर्वपरिग्रहविरमण पंचम महाव्रत । सर्वतः - तीन करण और तीन योग से परिग्रह रखने का यावज्जीवन परित्याग । For Private & Personal Use Only अहावरे पंचमे भंते! महव्वए परिग्गहाओ वेरमणं । सव्वं भंते! परिग्गहं पच्चक्खामि नेव सयं परिग्गहं परिगेण्हेज्जा नेवन्नेहिं परिग्गहं परिगेण्हावेज्जा परिग्गहं परिगेण्हंते वि अन्ने न समणु-जाणेज्जा जावज्जीवाए तिविहं तिविहेणं मणेणं वायाए कारणं न करेमि न कारवेमि करंतं पि अन्नं न समजाणामि । (द ४ सू १५ ) सर्वप्राणातिपातविरमण प्रथम महाव्रत । सर्वतः - तीन करण और तीन योग से प्राणातिपात (हिंसा) का यावज्जीवन परित्याग । www.jainelibrary.org

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