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जैन पारिभाषिक शब्दकोश
मानसिक सुख का वेदन होता है। यस्योदयात् शारीरं मानसं च सुखं वेदयते तत्सातवेदनीयम्।
(प्रज्ञा २३.१५ वृ प ४६७)
प्रत्याख्यानापवादहेतवोऽनाभोगाद्यास्तैराकारैः सहेति साकारम्।
(स्था १०.१०१ वृ प ४७२) सागरोपम उपमा काल का एक प्रकार। वह कालखण्ड, जो दस कोटाकोटि पल्योपम के बराबर होता है। अह दस पल्लककोडाकोडीतो एगं सागरोवमं।
(अनुचू पृ ५७) (द्र अद्धा, उद्धार, क्षेत्र सागरोपम) सागारिक
(बृभा २३४६) (द्र शय्यातर) सागारिका १. वह वसति, जहां रहने से कामोत्पत्ति होती है। २. वह वसति, जहां स्त्री-पुरुष एक साथ रहते हैं। जत्थ वसहीए ठियाणं मेहणब्भवो भवति, सा सागारिका। .""जत्थ इस्थिपुरिसा वसंति, सा सागारिका।
(निचू ४ पृ १) साङ्गार
(भग ७.२२) (द्र अङ्गार) साङ्गोपाङ्ग श्रुत आचार आदि बारह अंग और औपपातिक आदि बारह उपांग सहित श्रुत। अङ्गानि द्वादशाचारादीनि दृष्टिवादान्तानि उपाङ्गान्यौपपातिकप्रभृतीन्यङ्गार्थानुवादीनि। सहाङ्गोपाङ्गैर्वर्तत इति साङ्गोपाङ्गम्। तस्य च श्रुतस्य-प्रवचनस्य"।
(तभा ६.१४ वृ पृ २७) सातगौरव एक प्रकार का गौरव । सुख-सुविधाओं का अभिमान। गुरोर्भावः कर्म वेति गौरवं"अभिमानादिद्वारेण गौरवं. सातं-सुखम्। (स्था ३.५०५ वृ प १६३)
सातवेदनीय | वेदनीय कर्म की एक प्रकृति, जिसके उदय से शारीरिक और
सातानुग इहलोक और परलोक से निरपेक्ष होकर केवल सुख के पीछे दौड़ने वाला। सायं अणुगच्छंतीति सायाणुगा इहलोगपरलोगनिरवेक्खा।
(सूत्र १.२.५८ चू पृ ७०) सातिचारछेदोपस्थापनीय चारित्र वह छेदोपस्थापनीय चारित्र, जो किसी विशिष्ट अतिचारसेवन के बाद पुनः स्वीकृत किया जाता है। सातिचारस्य यदारोप्यते तत्सातिचारमेव छेदोपस्थापनीयम्।
(भग २५.४५४ वृ) सादिक विस्त्रसा बन्ध द्रव्य के प्रदेशों की वह स्वाभाविक संरचना, जिसका आदि बिन्दु हो, जैसे-परमाणुओं की स्कन्ध रूप में निर्मिति।
(भग ८.३५०) (द्र विस्त्रसा बन्ध) सादि पारिणामिक पारिणामिक भाव का एक प्रकार। वह परिणमन, जिसकी आदि है, जैसे-गति, बंध, आकृति आदि।। गतिबन्धसंस्थानादयः सादिः। (जैसिदी २.४९) सादि श्रुत श्रुतज्ञान का एक प्रकार । द्वादशाङ्ग श्रुत, जो व्युच्छित्तिनय की अपेक्षा से सादि है। वुच्छित्तिनयट्ठाए साइयं।
(नन्दी ४.६८) (द्र सपर्यवसित श्रुत) सादि संस्थान वह संस्थान, जिसमें नाभि के नीचे का भाग प्रमाणोपेत हो, ऊपर का भाग प्रमाणोपेत न हो। नाभेरधस्तनो देहभागो गृह्यते तेनादिना शरीरलक्षणोक्तप्रमाणभाजा सह वर्त्तते यत् तत् सादि। (स्था ६.३१ वृ प ३३९)
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