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जैन पारिभाषिक शब्दकोश
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बहुविध अवग्रहमति
करना तथा छोटे दोषों को छिपा लेना। १. व्यावहारिक अर्थावग्रह का एक प्रकार। बहुविध का बादरमेवातिचारजातमालोचयति न सूक्ष्मम्। अवग्रहण करना, जैसे-किसी एक वाद्य के शब्द के दो,
(स्था १०.७० वृ प ४६०) चार, संख्येय, असंख्येय आदि पर्यायों को एक साथ ग्रहण
बादर काय करना।
(स्था ४.४९४) ""बहुविहमणेगभेयं, एक्केक्कं निद्धमहुराई। (विभा ३०८)
(द्र बादर जीव) ""ततादिशब्दविकल्पस्य प्रत्येकमेकद्वित्रिचतुःसंख्येयासंख्येयानन्तगुणस्यावग्राहकत्वात् बहुविधमवगृह्णाति।
बादर जीव
(तवा १.१६.१६) बादर नामकर्म के उदय से निष्पन्न बादर शरीर वाले जीव, २. अनेक प्रकार का अवग्रहण, जैसे-स्वयं कुछ लिख रहा जो चक्षु द्वारा ग्राह्य हैं। है. उस समय दूसरे द्वारा कथित वचनों को सुन रहा है, बादरनामकर्मोदयाद् बादराः। (प्रज्ञावृ प २४) वस्तुओं की गणना कर रहा है, आख्यान (कथा) कह रहा
यदयाज्जीवानां चक्षुाह्यशरीरत्वलक्षणं बादरत्वं भवति।
(कप्र पृ २१) बहुविह णेगपयारं, जह लिहतिऽवधारए गणेति विय। अक्खाधगं कहेती, सद्दसमूहं व णेगविहं।।
बादरतेजस्कायिक (व्यभा ४१०७)
बादर नामकर्म के उदय से निष्पन्न स्थूल शरीर वाले
तैजसकायिक जीव, जो अलग-अलग होने पर दृश्य नहीं बहुश्रुत
होते, असंख्य शरीर समुदित होने पर दृश्य बन जाते हैं। १. वह मुनि, जो द्वादशाङ्ग का विशिष्ट ज्ञाता है।
(प्रज्ञा १.२४) परिसमत्तगणिपिडगज्झयणस्सवणेण य विसेसेण य
(द्र बादरपृथ्वीकायिक) बहुस्सुतो।
_(दअचू पृ २५६) २. विविध आगमों के श्रवण-अध्ययन से जिसकी बुद्धि बादरनाम निर्मल हो गई है।
नामकर्म की एक प्रकृति, जिसके उदय से जीव के स्थूल बहुश्रुता विविधागमश्रवणावदातीकृतमतयः।
शरीर का निर्माण होता है। उस पर दूसरे जीवों का उपघात (उ ११.१५ शावृ प २५३) और अनुग्रह हो सकता है। ३. छेदसूत्र आदि आगमों में कुशल-विशेषज्ञ ।
बादरनाम यदुदयाज्जीवा बादरा भवन्ति। 'बहुश्रुतं' छेदग्रन्थादिकुशलम्। (बृभा ५५६६ वृ)
(प्रज्ञा २३.३८ वृ प ४७४) ४. जो आगम-वृद्ध हो।
बादरनिगोद 'बहुश्रुतम्' आगमवृद्धम्। (दहावृ प २३५)
(जीवावृ प ४२३) बादर अप्कायिक
(द्र साधारणशरीरबादरवनस्पतिकायिक) बादर नामकर्म के उदय से निष्पन्न स्थूल शरीर वाले
बादरपृथ्वीकायिक अप्कायिक जीव, जो अलग-अलग होने पर दृश्य नहीं
बादर नामकर्म के उदय से निष्पन्न स्थूल शरीरवाले पृथ्वीहोते, असंख्य शरीर समुदित होने पर दृश्य बन जाते हैं।
कायिक जीव, जो अलग-अलग होने पर दृश्य नहीं होते, (प्रज्ञा १.२१)
असंख्य शरीर समुदित होने पर दृश्य बन जाते हैं। (द्र बादरपृथ्वीकायिक)
बादरनाम यदुदयाज्जीवा बादरा भवन्ति, बादरत्वं परिणामबादर आलोचना
विशेष: यवशात् पृथिव्यादेरेकैकस्य जन्तुशरीरस्य चक्षुआलोचना का एक दोष। केवल बड़े दोषों की आलोचना
ह्यत्वाभावेऽपि बहूनां समुदाये चक्षुषा ग्रहणं भवति।
(प्रज्ञा १.१६ व प २४).org Jain Education International
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