________________
जैन पारिभाषिक शब्दकोश
२८७
श्रमणभूत प्रतिमा उपासक प्रतिमा का ग्यारहवां प्रकार। प्रतिमाधारी उपासक इस प्रतिमा में मुनि की भांति समिति, गुप्ति का सम्यक् पालन करता है। स श्रमणभूतः साधुकल्प इत्यर्थः विहरेत्-गृहान्निर्गत्य निखिलसाधुसामाचारीसमाचरणचतुरः समितिगुप्त्यादि सम्यगनुपालयन्"। (प्रसा ९८० वृ प २९५) श्रमणसंघ जैनशासन का वह संगठन, जिसमें चार वर्ण होते हैं-साधु, साध्वी, श्रावक, श्राविका। .."चाउवण्णे समणसंघे, तं जहा-समणा, समणीओ, सावया, सावियाओ॥
(भग २०.७४)
२. वह श्रमणोपासक, जो बारह व्रतों का आंशिक पालन करता है। सकलचरणकरणाक्षमो गृहस्थयोग्यमनुगुणशिक्षाव्रतलक्षणं धर्ममनुतिष्ठति यथाशक्ति वा द्वादशप्रकारस्य धर्मस्यैकदेशानुष्ठाय्यपि श्रावक एव।
(तभा ९.४७ वृ) श्राविका चतुर्विध श्रमणसंघ का एक अङ्ग। वह स्त्री, जो बारह व्रतों का पालन करती है।
(भग २०.७४) (द्र श्रमणसंघ)
श्रुत १. द्वादशांग गणिपिटक।
(दअचू पृ११)
श्रमणी चतुर्विध श्रमणसंघ का एक अङ्ग। महाव्रतों को धारण करने वाली स्त्री।
(भग २०.७४) (द्र श्रमणसंघ)
(द्र श्रुतधर्म) २. प्रवचन।
(तभा ६.१४ वृ पृ २७)
(द्र साङ्गोपाङ्ग श्रुत)
श्रमणोपासक श्रावक, तत्त्वज्ञान की प्राप्ति के लिए श्रमणों की उपासना करने वाला। से जहाणामए समणोवासगा भवंति, उपासंति तत्त्वज्ञानार्थमित्युपासकाः।
(सूत्र २.२.७२ चू पृ ३६७) ।
श्रवण अवग्रह की तीसरी अवस्था, जिसमें एक समय की अवधि वाला सामान्य अर्थ का अवग्रहण होता है। एगसामइगसामण्णत्थावग्गहकाले सवणता भण्णति।
(नन्दी ४३ चू पृ ३५)
श्रुतअज्ञान १. अज्ञान का एक प्रकार । मिथ्यादृष्टि का श्रुतज्ञान। मति-श्रुत-विभंगा मिथ्यात्वसाहचर्यादज्ञानम्। मिथ्यात्विनां ज्ञानावरणक्षयोपशमजन्योऽपि बोधो मिथ्यात्वसहचारित्वात् अज्ञानमुच्यते। (जैसिदी २.३२ वृ) २. वह श्रुतशास्त्र, जो मिथ्यादृष्टि के द्वारा परिगृहीत है, सम्मत है। मिच्छदिट्ठस्स सुयं सुयअण्णाणं। (नन्दी ३६)
श्रुतकेवली भिन्नाक्षरचतुर्दशपूर्वी, समग्र श्रुत का पारगामी। श्रुत के आधार पर सर्व द्रव्य-क्षेत्र-काल-भाव का ज्ञाता।। सयलागमपारगया सुदकेवलिणामसुप्पसिद्धा जे। एदाण बुद्धिरिद्धी चोद्दसपुव्वि त्ति णामेण॥
(त्रिप्र ४.१००१) "दव्वओ णं सुयनाणी उवउत्ते सव्वदव्वाइं जाणइ पासइ। ""सव्वं खेत्तं""सव्वं कालं"सव्वे भावे जाणइ पासइ।
(नन्दी १२४)
श्राद्ध
वह श्रावक, जो साधुओं की सामाचारी जानने में निपुण होता
श्राद्धाः-साधुसामाचारीकोविदाः। (बृभा ३५८३ वृ)
श्रावक १. चतुर्विध श्रमणसंघ का एक अङ्ग। वह श्रमणोपासक, जो बारह व्रतों का पालन करता है। (भग २०.७४) (द्र श्रमणसंघ)
श्रुतज्ञान १. शाब्दज्ञान। वह ज्ञान, जो एक व्यक्ति से शब्द, संकेत
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org