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जैन पारिभाषिक शब्दकोश
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काए, वाउकाए, वणस्सइकाए, तसकाए।
(आचूला १५.४२)
षष्ठभक्त दो दिन का उपवास (बेला)। षष्ठं द्वावुपवासौ।
(प्रसावृप १६९)
को दिया जाता है। संक्लिष्टासुरोदीरितदुःखाश्च नारका भवन्तीति।
(तभा २.३३ वृ) संक्षिप्तविपुलतेजोलेश्या आतापना, क्षांतिक्षमा और निर्जल तप से उत्पन्न वह विस्तीर्ण तैजस शक्ति, जो अप्रयोग की स्थिति में संक्षिप्त अवस्था में (अन्तर्लीन) रहती है। तिहिं ठाणेहिं समणे णिग्गंथे संखित्तविउलतेउलेस्से भवति, तं जहा-आयावणताए, खंतिखमाए, अपाणगेणं तवोकम्मेणं। संक्षिप्ता-लघूकृता विपुलापि-विस्तीर्णापि सती अन्यथादित्यबिम्बवत् दुर्दर्शः स्यादिति तेजोलेश्या-तपोविभूतिजं तेजस्वित्वं तैजसशरीरपरिणतिरूपं महाज्वालाकल्पं येन स संक्षिप्तविपुलतेजोलेश्यः। (स्था ३.३८६ ७ प १३९) (द्र तेजोलब्धि, तेजोलेश्या)
संकेतक प्रत्याख्यान प्रत्याख्यान का एक प्रकार । संकेत या चिह्नसहित किया जाने वाला प्रत्याख्यान, जैसे-जब तक मेरी मुट्ठी नहीं खुलेगी, तब तक मैं कुछ नहीं खाऊंगा। 'संकेयगं.."केतनं केत:-चिह्नमङ्गष्ठमष्टिग्रन्थिगृहादिकं स एव केतकः सह केतकेन सकेतकं ग्रन्थादिसहितमित्यर्थः।
(स्था १०.१०१ वृ प ४७३)
संक्रमण कर्मकरण का एक प्रकार। सजातीय कर्म प्रकृतियों का आपस में होने वाला परिवर्तन। सजातीयप्रकृतीनां मिथ: परिवर्तनं-संक्रमणा। यथा-अध्यवसायविशेषेण सातवेदनीयम् असातवेदनीयरूपेण असातवेदनीयं च सातवेदनीयरूपेण परिणमति। आयुषः प्रकृतीनां दर्शनमोहचारित्रमोहयोश्च मिथः संक्रमणा न भवति।
(जैसिदी ४.५ वृ) संक्रामण दोष वाद-दोष का एक प्रकार । प्रस्तुत प्रमेय को छोड़कर अप्रस्तुत प्रमेय की चर्चा करना। संक्रामणं-प्रस्तुतप्रमेयेऽप्रस्तुतप्रमेयस्य प्रवेशनं प्रमेयान्तरगमनमित्यर्थः।
(स्था १०.९४ वृ प ४६७) संक्लिष्ट लेश्यामरण बालमरण का एक प्रकार, जिसमें अशुद्ध लेश्या अधिक संक्लिष्ट हो जाती है। संक्लिश्यमानाः संक्लेशमागच्छन्ति", सा लेश्या यस्मिंस्तत्तथा।
___(स्था ३.५२० वृ प १६५) संक्लिष्टासुरोदीरित दुःख वह दुःख, जो संक्लिष्ट चित्त वाले असुरों द्वारा नारक जीवों
संक्षेपरुचि १. रुचि का एक प्रकार । मिथ्या आग्रह के अभाव में स्वल्प ज्ञान से होने वाली रुचि। २. संक्षेपरुचिसम्पन्न व्यक्ति। अणभिग्गहियकुदिट्ठी, संखेवरुइ त्ति होइ नायव्वो। अविसारओ पवयणे, अणभिग्गहिओ य सेसेस।
(उ २८.२६) संख्यान १. गणित। २. निपुण गणितज्ञ। संख्यानं-गणितं तद्योगात्पुरुषोऽपि तथा, संख्याने वा विषये निपुण इति।
(स्था ९.२८ प ४२८) संख्येय गणनासंख्या का एक प्रकार। दो से लेकर उत्कृष्ट संख्येय तक। से किं ते गणणसंखा? गणणासंखा-एक्को गणणं न उवेइ, दुप्पभिइ संखा, तं जहा-संखेज्जए असंखेज्जए अणंतए॥
(अनु ५७४) संख्येयजीवी वह वनस्पति, जिसके एक शरीर में संख्येय जीव होते हैं।
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