Book Title: Jain Paribhashika Shabdakosha
Author(s): Tulsi Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 319
________________ ३०२ वस्तु में एक-एक धर्म के विधि और निषेध के विकल्प द्वारा किया जाता है। एकत्र वस्तुन्येकैक धर्मपर्यनुयोगवशादविरोधेन व्यस्तयोः समस्तयोश्च विधिनिषेधयोः कल्पनया स्यात्काराङ्कितः सप्तधा वाक्प्रयोगः सप्तभंगी । (प्रनत ४.१४ ) सप्तशिक्षाव्रतिक वह धर्म, जिसका भगवान् महावीर ने गृहस्थ के लिए सात शिक्षाव्रत के रूप में प्रज्ञापन किया था । .......समणोवासगाणं पंचाणुव्वतिए सत्तसिक्खावतिएदुवालसविधे सावगधम्मे पण्णत्ते । (स्था ९.६२) (द्र शिक्षाव्रत) सप्रतिक्रमण धर्म वह धर्म अथवा शासनव्यवस्था, जिसके अनुसार प्रातः, सायं - दोनों संध्याओं में प्रतिक्रमण (आवश्यक) करना अनिवार्य हो । प्रथम और अंतिम तीर्थंकर के शासन में यह व्यवस्था होती है। ......समणाणं णिग्गंथाणं पंचमहव्वतिए सपडिक्कमणे अचेल धम्मे पण्णत्ते । (स्था ९.६२ ) सपडिक्कमणो धम्मो, पुरिमस्स य पच्छिमस्स य जिणस्स । मज्झिमयाण, जिणाणं, कारणजाए पडिक्कमणं ॥ 'सप्रतिक्रमणः ' उभयकालं षड्विधावश्यककरणयुक्तो धर्मः पूर्वस्य पश्चिमस्य च जिनस्य तीर्थे भवति । (बृभा ६४२५ वृ पृ १६९२ ) समकव्यवच्छिद्यमानबन्धोदय वे कर्म-प्रकृतियां, जिनके बंध और उदय का व्यवच्छेद एक साथ होता है, जैसे- संज्वलन लोभ, हास्य आदि । समकमेककालं व्यवच्छिद्यमानौ बन्धोदयौ यासां ताः समकव्यवच्छिद्यमानबन्धोदयाः । (कप्र पृ ४१ ) समचतुरस्त्र संस्थान शरीर का वह संस्थान, जो चतुष्कोणीय होता है, समचतुरस्र संस्थान वाले व्यक्ति के सब अवयव प्रमाणयुक्त होते हैं। सर्वेऽप्यवयवाः शरीरलक्षणोक्तप्रमाणाव्यभिचारिणो यस्य न तु न्यूनाधिक प्रमाणास्तत्तुल्यं समचतुरस्रम् । (स्था ६.३१ वृ प ३३९, ३४० ) समण Jain Education International जैन पारिभाषिक शब्दकोश १. श्रमण, चतुर्विध श्रमणसंघ का एक अंग । वह पुरुष, जो महाव्रतों का पालन करता है। २. समन - सब जीवों को आत्मतुला की दृष्टि से देखने वाला । ३. शमन - कषाय को उपशान्त करने वाला । जह मम न पिये दुक्खं, जाणिय एमेव सव्वजीवाणं । न हाइ न हणावेइ य, सममणई तेण सो समणो ॥ (दनि १५४) (द्र श्रमण, श्रमणी ) समनस्क भूत, भविष्य और वर्तमानकाल का विचार-विमर्श करने वाला जीव । सम्प्रधारणसंज्ञायां ये वर्तन्ते जीवास्ते समनस्का भवन्ति । (तभा २.२५ वृ) (द्र संज्ञी, सम्प्रधारण संज्ञा ) समनुज्ञ वह मुनि, जो दार्शनिक दृष्टि और वेश से साधर्मिक है, सहभोजन की अपेक्षा से समसमाचारी वाला नहीं है। समनुज्ञः - दृष्टिलिङ्गाभ्यां साधर्मिकः, न तु सहभोजनेन । (आभा ८.१ ) समन्तानुपातक्रिया क्रिया का एक प्रकार । स्त्री, पुरुष, पशु आदि से व्याप्त स्थान में मलोत्सर्ग करना । स्त्रीपुरुषपशुसंपातिदेशे अन्तर्मलोत्सर्गकरणं समन्तानुपात - क्रिया । ( तवा ६.५.९) समपादपुता निषद्या का एक प्रकार। दोनों पैरों और पुतों को समरेखा में भूमि से सटाकर बैठना । समौ - समतया भूलग्नौ पादौ च पुतौ च यस्यां सा समपादपुता । (स्था ५.५० वृप २८७) समभिरूढ नय एकार्थक शब्दों में निरुक्त के भेद से भिन्न अर्थ को स्वीकार करने वाला दृष्टिकोण। जैसे- भिक्षु वह होता है, जो भिक्षा लेता है; वाचंयम वह होता है, जो वाणी का नियमन करता I For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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